चंदा बारगल/धूपछांव/ शनिवार की सर्द सुबह एक बार फिर गर्माहट भरी, मामला संसद पर हमले के आरोपी अफजल गुरू को फांसी देने की खबर का था। ढाई माह पूर्व 21 नवंबर 2012 को ठीक इसी तरह मुंबई हमले के आरोपी और पाकिस्तान से आए खूंख्वार आंतकी अजमल कसाब को फांसी दिए जाने की खबर दावानल की भांति फैली थी। कसाब की ही तरह अफजल गुरू को फांसी दिए जाने की खबर चकित कर देने वाली थी। आश्चर्य इसलिए अधिक था, क्योंकि कांग्रेसनीत यूपीए सरकार के बारे में जो आम धारणा थी, यह खबर ठीक उलट थी।
अब तक आम लोगों को, खासकर कांग्रेस विरोधियों को यही लगता था कि वोट बैंक के डर से यूपीए सरकार फांसी नहीं दे रही है। लोगों को यह भी लगता था कि प्रधानम़ंत्री डॉ. मनमोहनसिंह एक कमजोर और नकारा प्रधानमंत्री हैं। केंद्र सरकार ने पहले कसाब को और अब अफजल गुरू को फांसी पर लटकाकर सभी धारणाओं को झूठा साबित कर दिया है और अपने विरोधियों के साथ ही पाकिस्तान को करारा जवाब दे दिया है।
कसाब के बाद अफजल गुरू को फांसी देने की घटना अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। एक तो अनेक सालों बाद भारत, पाकिस्तान और उसके द्वारा पोषित आतंकवादियों को एक तगड़ा संदेश दे रहा है। आतंकवादियों को फांसी दिए जाने के फैसलों से आयरन लेडी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की याद आना स्वाभाविक है। इंदिरा गांधी ने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के दो टुकड़े करवाकर बांग्लादेश का निर्माण करवाकर ऐसा ही संदेश दिया था। उल्लेखनीय बात यह भी है कि भारत की संसद पर हमले के आरोपी अफजल गुरू को फांसी बाद में दी गई, जबकि 21 नवंबर को कसाब को फांसी देकर यह भावनात्मक संदेश भी दे चुकी है कि सरकार को संसद सदस्यों से ज्यादा चिंता आम जनता की है।
देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब अफजल गुरू और कसाब जैसे खूंख्खार आतंकवादियों को फांसी दी गई है। यह वाकई एक कड़ा फैसला है, वरना अब तक सारी सरकारें आतंकवादियों के प्रति नरम और उदार रवैया अपनाती रही हैं।
लोग—बाग वे दिन आज भी नहीं भूले हैं, जब भाजपानीत एनडीए सरकार के कार्यकाल के दौरान जेल में बंद खतरनाक आतंकवादी को विशेष विमान में बैठाकर ठेठ कंदहार जाकर सौंप दिया गया था। इस आतंकवादी को सौंपने कोई और नहीं, देश के विदेशमंत्री जसवंतसिंह खुद गए थे। यूपीए सरकार के इस आपरेशन से भाजपा भी स्तब्ध है। देश की जनता आतंकवाद के कारण अब तक लाखों निर्दोष लोगों और बड़े नेताओं को गंवाया है। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी आतंकवाद की बलि चढ़ चुके हैं। कसाब को फांसी देने के फैसले से इंदिरा गांधी द्वारा आधी रात को लिए जाने वाले फैसलों की याद ताजा कर दी। यह फैसला ऐसे वक्त लिया गया, जब लोकसभा चुनाव और आधा दर्जन से अधिक राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। कहा जा रहा है कि कांग्रेस सरकार ने यह कदम चुनाव में फायदे की दृष्टि से उठाया है और सरकार जल्द ही चुनाव की घोषणा कर सकती है। बहरहाल, कसाब के बाद अफजल गुरू को फांसी देकर केंद्र सरकार ने जनमानस की एक इच्छा पूरी कर दी है और अपने विरोधियों की बोलती बंद कर दी है।
अब तक विरोधी, खासतौर भाजपा और हिंदूवादी संगठन कांग्रेस को इस मुद्दे पर आड़े हाथों लेते थे, लेकिन कसाब और अफजल को फांसी देकर कांग्रेसनीत यूपीए सरकार ने जता दिया है कि देश की अस्मिता के साथ खिलवाड़ करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। आखिर, फांसी के इन फैसलों के पीछे दिमाग किसका है? यह तो नहीं पता पर माना जा रहा है कि इन फैसलों के पीछे सोनिया गांधी और राहुल गांधी की अहम् भूमिका है। इन फैसलों के जरिए राहुल गांधी की इमेज 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले सख्त फैसले लेने वाले नेता की बना दी जाए और यह संदेश देश भर में प्रसारित कर दिया जाए। इस फैसले से कांग्रेस को कितना फायदा होगा, यह तो समय ही बताएगा, मगर हम यह मानें कि चुनाव मुंहबाए खड़े हैं तो हैं कोई हर्ज नहीं।
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