गुरुवार, 10 मई 2012

आफरीन, तुम बहुत याद आओगी..

आफरीन, आखिर बंगलुरू के हास्पिटल से दहला देने वाली तुम्हारी दुखद खबर आ ही गई। डाक्टरों ने तुम्हें मृत घोषित कर ही दिया। एक मासूम, कोमल शिशु दो-तीन दिनों तक मौत से लड़ता रहा और आखिरकार हार गया..आफरीन मौत किसे नहीं आती? मनुष्य के जन्म के साथ ही साये की तरह मौत पीछे लग जाती है..पर तुम्हारे साथ कुछ अलग ही रहा.. तुम्हारे जन्म का स्वागत होने के बजाय तुम्हारे जन्मदाता ने ही तुम्हें निर्दयता और क्रूरतापूर्वक मौत के मुंह में धकेल दिया..अब्बाजान को चाहिए था बेटा..और तुम आ गई बेटी बनकर..

बाप तुङो देखकर भीतर ही भीतर भड़कता रहा, दहकता रहा और खुद के भीतर के शैतान को जगाता रहा अंदर ही अंदर..आखिर, तेरी उम्र ही कितनी थी आफरीन..मात्र 70-80 दिन ही ना..यानि मांस का लोथड़ा..तुङो क्या पता, बेटी किसे कहते हैं..प्रकृति का वरदान लेकर तुम पृथ्वी पर आईं..तुम्हारा रूप देखकर तुम्हारी अम्मीजान ने तुम्हारा नाम रखा आफरीन..आफरीन शब्द अरबी है, जिसका मतलब होता है खूबसूरत..पर तेरे अब्बा को तू ही पसंद नहीं थी..आखिर उसने अपने भीतर के शैतान को हांक मारी और सिगरेट के चटके देकर तेरे कोमल शरीर को जख्मी कर दिया..वह तुङो मार ही डालना चाहता था.. पर तुम बच गई अम्माजान के आंचल के कारण..तीन-चार दिनों तक तुम हास्पिटल में मौत से संघर्ष करती रहीं, उसे चुनौती देती रहीं..मौत से वह द्वंद्व पूरी दुनिया ने देखा। 

दुनिया भर से प्रार्थनाएं हुईं, दुआएं हुईं तुम्हारे लिए..धर्म-स्थलों के घंटे भी बजे होंगे तुम्हारे लिए.. पर वह तुम नहीं पाई होगी, इसलिए कि तुम निकल चुकीं थीं मृत्यु मार्ग पर..अम्मीजान जरूर लड़ी एक सैनिक, एक रक्षक की तरह..पति के खिलाफ और पति को शैतान बनाने वाली परिस्थिति के खिलाफ और परिस्थितिवश जन्मीं बेटी से उपजे द्वेष के खिलाफ ..हकीकत में तो तेरी अम्मीजान को इस लड़ाई में जीतना थी आफरीन..पर वह हार गई। उसकी इस जीत में ही दुनिया भर की अनचाही बेटियों की जीत थी।

आफरीन, इधर बंगलुरू में जब तुम मौत से लड़ रहीं थीं, तब उधर आंध्र में ऐसे ही एक अब्बाजान ने अपनी गर्भवती प}ी के पेट पर लात मारकर बेटी को गर्भ में मौत दे दी और उसे जन्मने भी नहीं दिया..बिहार में भी एक पिता नराधम बना और उसने एक के बाद एक दो बेटियों को मौत दे दी..समझ नहीं आता कि एकाएक ऐसी मौतों का सिलसिला क्यों बढ़ जाता है और बेटियों के दुश्मन कैसे गर्भस्थ शिशु को उसके सुरक्षित स्थान में खत्म करने में कामयाब हो जाते हैं। 

उन्हें झूठा साबित करने के लिए और व्यवस्था को तमाचा मारने के लिए तुङो जिंदा रहना था आफरीन..थोड़ा-सा याद करना था आफरीन कि तेरी अम्मी जान कैसे लड़ रही थी तेरे खातिर..अब्बाजान के खिलाफ उसने बगावत की और पुलिस के सामने खड़ी हो गई फरियादी बनकर..पति को कड़ी सजा दो..उसका यह आक्रोश भी तुङो सुनाई नहीं दिया होगा, क्योंकि तेरे अब्बाजान ने ही तेरा गला घोंट दिया था.. समूचा समाज तेरी अम्मीजान के पीछे खड़ा था..

व्यवस्था के खिलाफ, व्यवस्था की पैशाचिक मानसिकता के खिलाफ शुरू हुई इस लड़ाई में से एक यशगाथा निकलने की उम्मीद सबको थी..पर यह लड़ाई निर्भर थी तेरी सांस पर..पर आखिरकार सांस ने ही दगा दे दिया..तू और तेरी अम्मीजान हार गई..आफरीन, छोटी बच्ची होने के कारण तुङो पता नहीं कि ऐसी पराजय चकमा देने वाली होती हैं.. हकीकत में वह पराजय नहीं होती..वह जीत होती है..तेरे पहले भी अनेक आफरीन इसी तरह मौत के मुंह में धकेल दी गईं होंगी..बेटियों के प्रति नकारात्मक रवैये के कारण.. उनकी खबर, फोटो भी नहीं छपे होंगे अखबारों में..या छोटे पर्दे तक भी नहीं पहुंच पाई होंगी..

सहन किया उन्होंने और चढ़ गईं शैतानी प्रवृत्ति की बलि..आफरीन, ध्यान रखना तेरी अम्मीजान ने आखिर तक घुटने नहीं टेके..उसने लड़कर दिखाया..कोई कहेगा कि भविष्य की आफरीनों को ऐसे ही संघर्षो से मिलेगा जीवन-दान और उससे ही साबित होगा प्रकृति का वरदान..आफरीन, हम ये कैसे कहें कि तेरी अम्मीजान हार गई? अरे, वह तो जीत गई..उसने तुङो कम से कम सौ घंटे जिंदा रखकर दिखाया..जीने की शुरूआत ही कई दफा संघर्ष से होती है, यह साबित कर दिखाया.. आफरीन, तेरा जिक्र किसी परीकथा की माफिक नहीं होगा बल्कि मानव जीवन के अस्तित्व के लिए महायुद्ध गाथा की तरह होगा..कौन कहेगा आफरीन की तू मृत्यु को प्राप्त हो गई? तू मृत्यु के बाद भी जिंदा रहेगा..संदेश देती रहेगी..बेटी है तो जग है..लड़कियों को बढ़ाओ, लड़कियों को पढ़ाओ.. सच कहूं तो आज के बाद भी तू सबको याद आती रहेगी आफरीन..और आखिर में तुङो बचाने के लिए जूझती रही तेरी अम्मीजान की ललकार भरी लड़ाई को सलाम..

1 टिप्पणी:

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