मंगलवार, 26 जून 2012

क्या दया नायक, मार पाएंगे ‘सेंचुरी’

मुंबई का अपराध-जगत भी कभी किसी के नाम से घबराता था तो वो है दया नायक, वाकई नायक. ‘वेलकम, दया नायक’ जी हां, दया नायक की महाराष्ट्र पुलिस में पुनर्वापसी हो गई है. दरअसल, दया नायक का व्यक्तित्व ही महाराष्ट्र पुलिस की शान बढ़ाने वाला था पर आय से अधिक संपत्ति इकट्ठा करने के आरोप में उन्हें कई दिन जेल में और पुलिस दल से वनवास काटने को मजबूर होना पड़ा. एक चाय के ठेले पर काम करने वाले एक लड़के ने अपने जीवन में जो कमाल किया, वह वाकई तारीफ के काबिल है.


जिस आरोप में दया नायक पर कोई दया रहम न दिखाते हुए उसे घर भिजवा दिया गया था, उसका कोई भी प्रमाण या सबूत भ्रष्टाचार विरोधी ब्यूरो (एंटी करप्शन ब्यूरो) को आखिर तक हाथ नहीं लगा और अंतत: सत्य की जीत हुई. किसी समय महाराष्ट्र पुलिस की शान माने जाने वाला पुलिस अधिकारी एक दिन खलनायक कैसे बन सकता है? इस सवाल का जवाब आरआर पाटील यानी आबा का गृह विभाग कभी दे पाएगा या नहीं, पता नहीं पर एक बात स्लेट पर लिखी इबारत की तरह साफ है कि दया नायक को सुनियोजित रुप से फंसाया गया था. मुंबई के अंडर वर्ल्ड ने जब सिर उठा रखा था, तब दया नायक ने अनेक नामचीन बदमाशों को एनकाऊंटर में ढेर कर दिया था. इसी कारण ‘अब तक 56’‘कगार’और ‘रिस्क’ जैसी फिल्में उसके जीवन पर बनाई गई थी. ‘अब तक 56’ में तो दया ही दया दिखाई पड़ता था. 1990 के दौरान मुंबई में अपराधों का ग्राफ तेजी से चढ़ रहा था. 

इसके साल-डेढ़ साल बाद मुंबई में विभिन्न गेंग के बीच आपसी रंजिश परवान चढ़ने लगी थी. दोनों गेंग एक-दूसरे के खून की प्यासी हो गई थीं. उस दौरान 54 गुंडे आपसी भिड़ंत में ढेर हो गए. इस गेंग वॉर से लोगों को लगने लगा था कि मुंबई पुलिस नामक की कोई चीज है भी कि नहीं. उन दिनों जब यह गेंग वॉर पुलिस के लिए सिरदर्द बन गया था, तब मुंबई पुलिस के जांबाज अधिकारी-प्रदीप शर्मा, विजय सालसकर, सचिन वाङो, प्रफुल्ल भोसले, रवींद्र नायक और दया नायक ने इन गुंडे बदमाशों का एनकाउंटर शुरु किया.1993 में आपसी भिड़ंत में 37 गुंडे मारे गए. इतने ही गुंडों को पुलिस ने मौत के घाट उतारा. 1994 में 30 बदमाशों को मार गिराने में पुलिस को सफलता मिली.अमर नाईक गिरोह को पुलिस ने जबरदस्त झटका दिया. 

इसके बाद यानी 1997 में माफिया ने एक बार पुलिस की नाक में दम कर दिया. ‘कैसेट किंग’ गुलशनकुमार, मुकेश दुग्गल, वल्लभभाई ठक्कर, नटवरलाल मोदी, आदि हस्तियों को अलग-अलग गेंग द्वारा मार गिराए जाने के बाद पुलिस के सामने एक बार फिर चुनौती खड़ी हो गई. उन दिनों दया नायक एंड कंपनी ने 71 बदमाशों को मौत के घाट उतारा. दाउद इब्राहीम, छोटा राजन, छोटा शकील, अश्विन नाईक, अरुण गवली, आदि गिरोहों को जब जबरदस्त झटका मिलने लगा, तब तक दया नायक ने ‘अब तक 56’ का ग्राफ उठाकर 86 कर लिया था. 

पुलिस अधिकारियों-कर्मचारियों से लेकर आम आदमी तक को तब लगने लगा था कि दया नायक अब ‘सेंचुरी’ मारेगा किंतु उन्हीं दिनों मानव अधिकार आयोग आड़े आ गया. दया नायक सहित अनेक अधिकारियों को या तो घर बैठना पड़ा या फिर जेल जाना पड़ा. इनमें सबसे ज्यादा मुसीबत दया नायक पर आई. पूरे महाराष्ट्र में किसी समय का हीरो अचानक खलनायक के रुप में पहचाना जाने लगा. दुर्भाग्य ने उसका पीछा नहीं छोड़ा. उस पर ‘मकोका’ लगाया गया, लेकिन एसीबी दया नायक के खिलाफ सबूत जुटा नहीं पाया और दया नायक अनुपातहीन संपत्ति के मामले में बरी हो गए. महाराष्ट्र पुलिस को उनका सम्मान कर उन पर वाकई दया करना चाहिए.

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