बुधवार, 27 जून 2012

फेसबुकिए, जरा गौर करें

फेसबुक की संस्कृति मतलबी और क्षणभंगुर है.यहां किसी भी गंभीर समस्या का हल नहीं ढ़ूंढा जा सकता. फेसबुक के 98 प्रतिशत लोगों को ऐसा नहीं लगता कि अच्छा पढ़ा जाए, संगीत का रसपान किया जाए, किसी गंभीर विषय पर चर्चा की जाए.’-यह मानना है आयटी विशेषज्ञ अच्युत गोडबोलेजी का.


फेसबुक संस्कृति पर उनकी यह टीका वाकई मायने रखती है. दरअसल, ठाणो के आहान फाउंडेशन ने एक मुहीम छेड़ी है जिसे नाम दिया गया है ‘रिस्पांसिबल नीटेजंस.’ यह बात गोडबोलेजी ने फाउंडेशन की वेबसाइट के अवसर पर कही. उनका यह भी कहना है कि फेसबुक के कारण हलचल पैदा होती है, क्रांति नहीं. खुद को असुरक्षित मानने और तनावग्रस्त लोग फेसबुक का इस्तेमाल अधिक कर रहे हैं. 

दुनिया भर में आज 50 करोड़ फेसबुक यूजर हैं. हरेक के औसतन 150 मित्र हैं और करीब 25 करोड़ यूजर हर रोज लॉगइन होते हैं. 300 करोड़ फोटो और 1 करोड़ 40 लाख वीडियो अपलोड होते हैं तो 500 करोड़ घटनाएं या खबरें शेयर की जाती हैं. 10 करोड़ यूजर मोबाइल पर फेसबुक से कनेक्ट होते हैं. प्रत्येक यूजर महीने में औसत 8 नए मित्र बनाता है और 25 कमेंट्स करता है. क्या आप गोडबोलेजी के विचारों से सहमत हैं?

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