शुक्रवार, 11 मई 2012

सोनी तुम जल्दी अच्छी हो जाओ!

सोनी सोढ़ी को आप नहीं जानते होंगे? मैं भी नहीं जानता पर उसके लिए दुआ कर रहा हूं। सोनी सोढ़ी, छत्तीसगढ़ के उन तमाम लोगों में शुमार एक महिला है जो नक्सलवाद के नाम पर पुलिस प्रताड़ना के शिकार हुए हैं। सोनी दंतेवाड़ा के एक गांव में शिक्षिका है। उसका पति माओवादी होने के आरोप में जेल में है और उसका भांजा लिंगाराम माओवादियों के लिए चौथ वसूली करने के आरोप में जेल की हवा खा रहा है। पिछले अक्टूबर में सोनी को भी पुलिस ने अपने शिकंजे में ले लिया। उसके पांच से बारह साल के तीन बच्चे रिश्तेदारों और होस्टल में बिखरे पड़े हैं। इस कहानी का सबसे विदारक भाग यह है कि सोनी के माता-पिता को माओवादियों ने गोली मारकर जख्मी कर दिया और वे जगदलपुर के हास्पिटल में इलाज करा रहे हैं।

सोनी सोढ़ी पर पुलिस ने जो अत्याचार किए, उसे सुन कर दिल दहल जाता है। सोनी को निर्ममतापूर्वक पीटा तो गया ही, उसके गुप्तांगों में पत्थर डालने जैसे दुस्साहस भी पुलिस ने कर दिखाया। इन तमाम कारणों से वह ठीक से खड़ी भी नहीं हो पाती है। सोनी के इलाज के लिए सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा और फिलहाल उसका नईदिल्ली के एम्स में इलाज चल रहा है। सोनी और उसके परिवार जैसे हजारों लोग छत्तीसगढ़ जैसे नक्सलग्रस्त राज्य में ‘इधर कुआं, उधर खाई’ की स्थिति में जीते हैं। 

नक्सलियों और पुलिस के पाटों के बीच पिस रहे तमाम आदिवासी परिवारों की एक बानगी है सोनी सोढ़ी। सोनी और उसका पति उस इलाके के सवरेदय कार्यकर्ता हिमांशु कुमार के संपर्क में थे और उनके मजदूरी बढ़ाने के लिए किए गए आंदोलन में शामिल होने की बात पुलिस डायरी में दर्ज है। लिंगाराम पर एस्सार कंपनी से चौथ वसूली करने का आरोप है, मगर एस्सार ने इस बात से साफ-साफ इनकार कर दिया है फिर भी वह जेल में है।

सोनी और उसका परिवार नक्सलवादी है या नहीं, यह तो पुलिस जांच और न्यायालय के फैसले से ही तय होगा, मगर सोनी की हालत को देखते हुए हमारी व्यवस्था पर तमाम सवाल पैदा होते हैं, उनका क्या? सोनी का कहना है, भागकर कहीं जाना नहीं, जेल में सड़ना नहीं और माओवादियों के हाथों मरना नहीं। हिंसा विरोधी लड़ाई में सोनी की भावना और उसकी पीड़ा को कोई समझने की कोशिश करेगा क्या?


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