गुरुवार, 31 जनवरी 2013

क्या हुसैन बनना चाहते थे कमल हासन?

चंदा बारगल/ धूप-छांव/ बेशक,कमल हासन एक उम्दा अभिनेता, संवेदनशील और बुद्धिवान व्यक्ति हैं पर उन्होंने जिस प्रकार देश छोड़ने की बात कही, वह अप्रत्याशित थी। 'विश्वरूप' के पहले भी कई फिल्मों का विरोध हुआ है और फिल्मों के विरोध का इतिहास पुराना ही नहीं बल्कि विवादास्पद भी है और यह इतिहास बताता है कि फिल्म या दूसरी किसी कला का विरोध किसी उसके आड़े नहीं आता।

मेरा मतलब यह नहीं कि कमल हासन की फिल्म का विरोध उचित नहीं, पर विरोध हो ही नहीं या कोई विरोध करे ही नहीं, यह सोच ठीक नहीं। 'विश्वरुप' का विरोध अभी अदालत तक ही पहुंचा है। वैसे तो देश-दुनिया में हत्या के फतवे तक दिए जाते हैं। विरोध से डर जाए तो वह कलाकार कैसा? 

कमल हसन ने कतिपय लोगों और संगठनों को निशाना बनाया है। एक खास बात यह है कि स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर घोषित अवार्ड में पद्मभूषण के लिए एक नाम कमल हासन का भी था। 'विश्वरूप' को लेकर कतिपय संगठनों के विरोध के मद!देनजर उनका नाम आखिरी क्षणों में उनका नाम कट गया। ऐसा हकीकत में हुआ हो तो यह वाकई शर्मनाक बात है। 

कोई—सी क्रियेटिव आर्ट हो तो उसका विरोध होना ही है। तस्लीमा नसरीन और सलमान रश्दी जैसे तमाम लेखकों, कवियों को देश निकाला दे दिया गया, लेकिन ऐसे किस्से बहुत कम हैं, जब किसी कलाकार ने कहा हो कि मुझे न्याय नहीं मिला तो मैं देश छोड़ दूंगा। सबसे पहली बात तो यह कि कमल हासन ने यह कैसे मान लिया कि उसे न्याय नहीं मिलेगा? 

मद्रास हाईकोर्ट ने मंगलवार को ही फिल्म पर लगाया गया प्रतिबंध उठा लिया है। दूसरी बात यह कि फैसला होने तक प्रतीक्षा करने का धैर्य तो कलाकार में होना चाहिए। यदि अन्याय हुआ हो तो अपनी व्यथा जाहिर करना उचित माना जा सकता है। 

कमल हासन ने कहा कि मुझे भी च़ित्रकार मकबूल फिदा हुसैन जैसा ही करना पड़ेगा। हुसैन ने हिंदू देवी—देवताओं के चित्रों को लेकर विरोध हुआ था, उनके पुतले जलाए गए थे आर्ट गैलरी में तोड़फोड़ हुई थी और तमाम शहरों में उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज थे, इतना होने पर भी देश का कानून हमेशा हुसैन के साथ ही था। कतर जाने के बाद और वहां की नागरिकता ले लेने के बाद देश का कलाप्रेमी वर्ग उनकी पेंटिंग्स की तारीफ करता था और आज भी उनके तमाम प्रंशसक इंदौर, भोपाल, मुंबई, दिल्ली जैसे शहरों में मौजूद हैं। 

फिल्म हो या कार्टून, नाटक हो या किताब— विवाद होते ही हैं, यह कोई नई बात नहीं है। जिस दिन कमल हासन ने यह बात कही, उसी दिन दीपा मेहता की फिल्म 'मिडनाइट्स चिल्ड्रन' के प्रमोशन के लिए आने वाले लेखक सलमान रश्दी का कार्यक्रम ही रद्द कर दिया गया। सलमान रश्दी को सुरक्षा कारणों से रोक दिया गया। कोलकाता में आयोजित पुस्तक मेले में निमंत्रण न मिलने पर तस्लीमा 
नसरीन ने नाराजगी व्यक्त की है। कला जगत में ऐसे बवंडर तो मचते रहते हैं, उनसे डरने या घबराना नहीं चाहिए। 

फिलहाल, शाहरूख खान को लेकर विवाद चल रहा है। ऐसे विवाद में शाहरुख ने भी एक भारतीय के नाते कह दिया कि मुझे भारतीय होने का गर्व है और चतुराई बरतते हुण् भी कह दिया कि पाकिस्तान चुप रहे। कमल हासन की बात से हरेक कलाप्रेमी को ठेस पहुंची है, यह तय है। कमल हासन ने कहा कि मुझे लगता है कि तमिलनाडु नहीं चाहता कि मैं यहां रहूं,इसलिए मैं रहने के लिए देश में किसी धर्मनिरपेक्ष राज्य को ढूंढूंगा और यदि देश में ऐसा कोई राज्य नहीं मिला तो मैं देश छोड़ दूंगा।

यही बात, तमिलनाडु और देश को अपमानित करने जैसी है। कुछ लोगों के विरोध के बाद कमलहासन यह कैसे कह सकते हैं कि तमिलनाडु नहीं चाहता कि वो यहां रहे। कमल हासन के यह कहने का एक अर्थ यह भी निकलता है कि तमिलनाडु धर्मनिरपेक्ष नहीं। यही बात भारत पर भी लागू होती है।  

कमल हासन को यह नहीं भूलना चाहिए कि देश और इस देश के लोगों ने बहुत कुछ दिया है। प्रशंसकों ने उनके अभिनय को सिर आंखों पर बैठाया है। देश छोड़ने की बात करके अपने प्रशंसकों को ठेस ही पहुंचाई है। ऐसी बात उनके जैसे कलाकार को शोभा नहीं देता। भारत जैसे महान देश पर, दुनिया के सबसे संविधान पर और उससे भी महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति के अधिकार पर भी यकीन न हो तो फिर हम नहीं रोकेंगे।

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