बुधवार, 16 जनवरी 2013

आखिर,देश में किसका'राज'है?

कौन कैसे रहे? किस प्रकार रहे? क्या पहने और क्या न पहने? किसके साथ शादी रचाए? युवतियों को नौकरियां करना चाहिए या नहीं? यह सब कौन तय करेगा? जवाब है व्यक्ति खुद! हमारे संविधान ने ही हमें यह अधिकार दिया है। फिर भी कतिपय पंचायतें, संस्थाएं, संगठन और जातियां चाहे जब मनमाने 'फतवे' और 'आदेश' जारी करती रही हैं! 

ये निर्णय या फरमान कानून के विरूद्ध हैं, यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश् न्यायमूर्ति आफताब आलम और रंजना प्रकाश देसाई की खंडपीठ ने खाप पंचायत के निर्णयों को गैरकानूनी करार दिया है। हरियाणा की एक खाप पंचायत ने एक आदेश जारी किया था कि गांव की युवतियों को अमुक तरह के कपड़े पहनें और महिलाओं को मोबाईल फोन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। पंचायत के इस फैसले के खिलाफ 'शक्तिवाहिनी' नामक एक संस्था ने अदालत में याचिका दायर कर आदेश देने की विनती की थी।

हरियाणा,उत्तरप्रदेश, बिहार और दूसरे अनेक राज्यों में पिछले कुछ समय से कई पंचायतों, संस्थाओं और जातियों ने जैसे अपना ही संविधान बना लिया हो, इस प्रकार धड़ाधड़ आदेश जारी कर रही है। ये लोग पंचायत लगाकर ऐसे नियम बनाती हैं और आदेश देती हैं जो हमारे संविधान को ठेस पहुंचाने वाले होते हैं। सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर, इन्हें ऐसे नियम बनाने और आदेश सुनाने का ये अधिकार किसने दिया? 

हरियाणा,उत्तरप्रदेश, बिहार और दूसरे अनेक राज्यों में पिछले कुछ समय से कई पंचायतों, संस्थाओं और जातियों ने जैसे अपना ही संविधान बना लिया हो, इस प्रकार धड़ाधड़ आदेश जारी कर रही है। ये लोग पंचायत लगाकर ऐसे नियम बनाती हैं और आदेश देती हैं जो हमारे संविधान को ठेस पहुंचाने वाले होते हैं। सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर, इन्हें ऐसे नियम बनाने और आदेश सुनाने का ये अधिकार किसने दिया? 

हमारे देश में ऐसे लोगों को रोकने वाला कोई नहीं? जैसे छोटे गांवों और शहरों में माफियाओं और गुंडों की अपनी अदालतें चलती हैं,इसलिए क्या इन्हें भी चलने देना चाहिए। दुनिया के सबसे बडे लोकतांत्रिक देश में शर्मनाक, घृणास्पद और दुखद है।

हां, हमारी अदालतें जरूर ऐसे निर्णयों को गैरकानूनी, मूलभूत अधिकारों का हनन करने वाली और नैसर्गिक सिद्धांतों का हनन करने वाली मानती हैं, पर कब? जब कोई व्यक्ति या संस्था ऐसे निर्णयों के खिलाफ अदालत की शरण लेता है तब? एक पंचायत को मना किया जाता है तब तक दूसरी पंचायत आदेश जारी कर देती है। कई गांवों में ऐसे तालिबानी आदेशों का पालन आज भी हो रहा है।

बिहार ​के किशनगंज जिले के सुंदरबद्दी गांव की पंचायत ने भी आदेश दिया कि लड़कियां मोबाईल फोन के कारण ही लफड़ा करती हैं, इसलिए मोबाईल का इस्तेमाल बंद। खासियत यह कि ऐसे सभी आदेश या फरमान केवल महिलाओं के लिए ही दिए जाते हैं। कोई लड़का यदि छेड़छाड़ करे तो कोई दिक्कत नहीं!ऐसे लोगों से कोई क्यों नहीं पूछता कि भाई क्या यहां तुम्हारे बाप का राज है?

दुर्भाग्य की बात यह है कि हमारे राजनेता ऐसे मुद्दों पर चुप्पी साध लेते हैं! लोग नाराज हों तो हों, वोट नहीं देंगे ना! हरियाणा की एक खाप पंचायत ने तो यहां तक कह दिया था कि लड़कियों पर बलात्कार होते हैं, इसलिए विवाह की उम्र घटाकर उनकी छोटी उम्र में ही शादी कर दी जाना चाहिए। इससे भी दु:खद और दुर्भाग्य की बात यह है कि लोकदल के प्रमुख और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला भी हामी भरते हुए कहते हैं कि खाप की एक्शन सही है और लड़कियों की छोटी उम्र में शादी कर देना चाहिए। 

उत्तरप्रदेश के बागपत जिले के असरा गांव की खाप पंचायत ने कुछ समय पूर्व ऐसा तालिबानी फरमान जारी किया कि 40 साल से कम उम्र की महिलाओं—युवतियों को मुंह ढांककर ही घर से निकलना चाहिए। यही नहीं, युवतियां शॉपिंग करने भी नहीं जाएं और मोबाइल फोन का इस्तेमाल भी नहीं करें! एक दूसरी पंचायत ने आदेश दिया कि गांव का कोई लड़का या लड़की लव मेरेज नहीं करे, यदि करेंगे तो उन्हें गांव बाहर कर दिया जाएगा। कितने ही गांवों में तो लव मेरेज करने वालों को पंचायतों ने सार्वजनिक प्रताड़ना दी है। 

हमारे देश में ऐसे लोगों को रोकने वाला कोई नहीं? जैसे छोटे गांवों और शहरों में माफियाओं और गुंडों की अपनी अदालतें चलती हैं,इसलिए क्या इन्हें भी चलने देना चाहिए। दुनिया के सबसे बडे लोकतांत्रिक देश में शर्मनाक, घृणास्पद और दुखद है।

हां, हमारी अदालतें जरूर ऐसे निर्णयों को गैरकानूनी, मूलभूत अधिकारों का हनन करने वाली और नैसर्गिक सिद्धांतों का हनन करने वाली मानती हैं, पर कब? जब कोई व्यक्ति या संस्था ऐसे निर्णयों के खिलाफ अदालत की शरण लेता है तब? एक पंचायत को मना किया जाता है तब तक दूसरी पंचायत आदेश जारी कर देती है। कई गांवों में ऐसे तालिबानी आदेशों का पालन आज भी हो रहा है।

हमारे देश में किसी ग्राम पंचायत, संस्था या जाति या समाज या धर्म को ऐसा अधिकार नहीं है कि लोगों के मूलभत अधिकारों का हनन हो, ऐसे नियम, कानून या नीतियां बनाए। सही बात तो यह है कि ऐसे निर्णयों को गैरकानूनी घोषित करने के बजाय एक नया कानून बनाना चाहिए कि देश के संविधान और कानून की धाराओं का उल्लंघन या भंग करे तो उसके विरुद्ध अपराध दर्जकर कानूनन कार्रवाई की जा सके। खाप पंचायत या दूसरा कोई देश के कानून के खिलाफ हो तो उसके विरुद्ध किस प्रकार कार्रवाई की जा सकती है?

देश में यदि ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन ऐसा आएगा कि हरेक ग्राम पंचायत और शहरों के अपने—अपने नियम बन जाएंगे और वे सब अपनी मनमर्जी से आदेश और फतवे जारी करते रहेंगे। ऐसे निर्णयों/फैसलों के कारण ही भारत अब तक सर्वशक्तिशाली देश नहीं बन पाया है।

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