मंगलवार, 1 जनवरी 2013

'देश की बेटी' को आखिर, सिंगापुर क्यों भेजा?

चंदा बारगल/ धूप-छांव/ देश की राजधानी में नराधमों का भोग बनी 23 वर्षीय फिजियोथैरेपी की छात्रा की सिंगापुर में हुई मौत के बाद यह सवाल उठा है कि उसे देश के बाहर ले जाने की क्या वाकई जरूरत थी। कतिपय लोगों का मानना है कि पीड़ित युवती को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल से सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ हास्पिटल भेजने के पीछे चिकित्सकीय कारण कम और राजनीतिक कारण अधिक थे।

इसमें कुछ 'लफड़ा' होने की शंका केंद्रीय गृहमंत्री सुशीलकुमार शिंदे के बयान से होती है, जो उन्होंने युवती की मौत के 22 घंटे बाद दिया था। एक पत्रकार के इस सवाल के कि किन कारणों से युवती को सिंगापुर भेजा गया था, शिंदे ने कहा था कि "यह निर्णय राजनीतिक नहीं था। डॉक्टरों की सलाह पर मरीज के हित में हमने यह निर्णय लिया था। खास तौर पर सफदरजंग, एम्स और डॉ. त्रेहान की सलाह उसे सिंगापुर के 'क्रिटिकल केयर' हास्पिटल भेजने की थी। 

दिल्ली के गंगाराम हास्पिटल के प्रमुख सर्जन और भारत में आंतडियों की सर्जरी के जनक डॉ. समीर नंदी के मुताबिक, युवती को सिंगापुर भेजे जाने के पहले उसकी जाखिम के बारे में विचार करने की जरूरत थी। उसकी जो आंतड़ियां काटी गई थीं, उसके ट्रांसप्लांट में महीनों का समय था और तत्कालीन प्राथमिकता युवती की देखरेख की थी। डॉ. नंदी का कहना है कि भारत में उपलब्ध मेडिकल सुविधाओं से अच्छी तरह देखभाल हो सकती थी परंतु सरकार को भविष्य की चिंता थी। 

डॉ. नंदी तो यहां तक कहते हैं कि सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ हास्पिटल में अब तक आंतड़ियों का एक भी ट्रासंप्लांट नहीं हुआ और वैसे भी दुनिया के बढ़िया ट्रासंप्लांट सेंटर पिट्सबर्ग और टोरंटो में हैं। एम्स के एक डॉक्टर के अनुसार, पीड़ित को सिंगापुर ले जाने के निर्णय में डॉक्टरों की सहमति कम और सरकार का दबाव अधिक था। 

डॉक्टरों के मतानुसारप्रधानमंत्री मनमोहनसिंह का आपरेशन और देखभाल भारत में हो सकती है और अटलबिहारी वाजपेयी के घुटनों का आपरेशन विदेशी डॉक्टर भारत आकर कर सकते हैं तो उस पीड़ित युवती की देखभाल में क्या दिक्कत थी? उपर से वेंटिलेटर पर उस युवती की हालत भी इतनी गंभीर थी कि सरकार चाहती तो विदेश से डॉक्टर बुलवा सकती थी। दिल्ली में ही उस दर्जे के डॉक्टर और सुविधाओं की कमी नहीं थी। डॉ. नंदी के मुताबिक, हमने(एम्स) एक सप्ताह में ही आंतड़ियों को ट्रासंप्लांट कर देने का आफर दिया था। इसके बावजूद उसे सिंगापुर भेजने का निर्णय लिया गया। यह निर्णय सरकार के स्तर पर लिया गया था और युवती के साथ जाने वाली डॉक्टरों की टीम में जिन डॉक्टरों ने उसका इलाज किया था, सफदरजंग के उन डॉक्टरों को बाजू कर मेदांता मेडिसिटी हास्पिटल के प्रायवेट डॉक्टरों को शामिल किया गया था।

मुंबई के ब्रीच केंडी खंभाला हास्पिटल के साथ संबद्ध प्रसिद्ध गेस्ट्रो इन्टेस्टाईनल सर्जन पवनकुमार का कहना है कि छोटी आंतड़ियों के ट्रासंप्लांट के बारे में चिकित्सा जगत में अभी भी बहुत कम जानकारी है। किसी हास्पिटल में इस प्रकार के कम से कम 10 आपरेशन हुए हों तो उस हास्पिटल में ऐसे मरीज को भर्ती किया जा सकता है। डॉ. पवनकुमार के मतानुसार, इस प्रकार के ट्रांसप्लांट जहां भी हुए हों, वहां कितने मरीज जीवित रहे हैं, यह जानना बहुत जरूरी है और शायद इसी कारण से सिंगापुर के हास्पिटल को चुना गया। आंतड़ियों के ट्रासंप्लांट के बाद मरीज के बचने की संभावना इस बात पर निर्भर होती है कि उसके शरीर में चेप रोका गया है या नहीं, उसका खाना कैसा था और उसका इम्यून सिस्टम कैसा था। 

बीबीसी के एक रिपोर्टर ने माउंट एलिजाबेथ हास्पिटल से संपर्क कर आंतड़ियों के ट्रासंप्लांट के बारे में जानकारी चाही तो उसे हास्पिटल की वेबसाइट पर जाने की सलाह दी गई थी। इस रिपोर्टर का कहना है कि "हास्पिटल की वेबसाइट पर तमाम प्रकार के ट्रासंप्लांट की जानकारी है, परंतु उसमें आंतड़ियों के ट्रांसप्लांट का कहीं उल्लेख नहीं है।" 

पीड़ित युवती को जब सिंगापुर ले जाया गया था, तब एक खबर यह भी आई थी कि 30 हजार फीट की उंचाई पर प्लेन में उसका ब्लडप्रेशर खतरनाक तरीके से नीचे आ गया था। डॉक्टरों की एक्सपर्ट टीम के एक सदस्य ने 'दि हिंदू' को बताया था कि सरकार की ओर से इतना ही पूछा गया था कि युवती सिंगापुर जाने की स्थिति में है या नहीं। इस टीम में एम्स, गोविंद वल्लभ पंत हास्पिटल और सफदरजंग हास्पिटल के डॉक्टर थे। एक डॉक्टर ने 'दि हिंदू' को बताया था कि सरकार ने यह नहीं पूछा था कि इलाज में कोई कमी है या नहीं या और अधिक सुविधा की जरूरत है या नहीं। सरकार पहले ही फैसला कर चुकी थी।

मंगलवार की रात्रि युवती की हार्ट रेट अचानक पांच मिनट तक अब्क गई थी। इसके बाद सफदरजंग हास्पिटल के डॉक्टरों ने दूसरे हास्पिटल के एक्सपर्ट को बुलाया था। बुधवार को आखिरी मेडिकल बुलेटिन जारी कर बताया गया था कि वेंटिलेटर के बिना युवती श्वांस नहीं ले पा रही है। बुलेटिन में यह भी कहा गया था कि उसमें भारी इन्फेक्शन फैल गया है और लीवर भी काम नहीं कर रहा है। 

'दि हिंदू' की रिपोर्ट के अनुसार, इस बारे में प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह के साथ चर्चा हुई थी और उसके बाद ही युवती को सिंगापुर ​भेजने का निर्णय लिया गया था। सिंगापुर स्थित भारतीय दूतावास ने युद्ध स्तर पर सारी औपचारिकता पूरी की थी। डॉक्टरों को भी ऐसी उम्मीद नहीं थी कि सिंगापुर में उसकी हालत सुधर जाएगी। प्रायमरी हास्पिटल के वरिष्ठ सर्जन डॉ. कौशलकांत मिश्रा के अनुसार,"युवती जिस स्थिति में थी, उसे देखते हुए आंतड़ियों के ट्रासंप्लांट का कोई सवाल ही नहीं था। हमें यह समझ में नहीं आ रहा कि यहीं उसकी अच्छी देखभाल हो सकती थी तो फिर उतवालापन दिखाकर उसे सिंगापुर क्यों भेजा गया?"

रास्ते में 30 फीट की उंचाई पर भी यह साफ हो गया था। वो तो आईसीयू विशेषज्ञ डॉ. पी.के. वर्मा और डॉ. यतीन मेहता ने आर्टिरियल लाइन कर ब्लड प्रेशर बचा लिया था। सूत्रों के मुताबिक, आईबी प्रमुख नेहछलसिंह ने मंगलवार को ही गृहमंत्री को बता दिया था कि दिल्ली में यदि युवती की मौत होगी तो पूरे देश में बवाल मच जाएगा। इंडिया गेट पर बिना किसी नेता या राजनीतिक पार्टी के हजारों युवक—युवतियां अपना काम—धंधा छोड़कर जिस प्रकार पुलिस से भिड़ गए हैं, उसे देखकर सरकार की चूलें हिल गईं थीं और उससे बचने के लिए ही 'देश की बेटी' की मौत देश के ​बजाय विदेश में हो, यह 'गेम' खेला गया।

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