गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

आखिर, कब तक 'शिकार' होती रहेंगी बहन-बेटियां?

चंदा बारगल/ धूप-छांव/ प्रसिद्ध मराठी लेखिका मुक्ता मनोहर की एक पुस्तक है, जिसका शीर्षक है—'नग्न सत्य।' इस पुस्तक में देश में हर रोज घटित हो रही बलात्कार की घटनाओं का ब्यौरा और उसका विश्लेषण है। इस पुस्तक के पहले अध्याय में इस बात का जिक्र है कि हर रोज अखबारों में छपने वाली बलात्कार की घटनाएं लोगों को चिंति​त और बेचैन कर देती हैं।

बेशक, बलात्कार की ये बढ़ती घटनाएं हर उस व्यक्ति को, खास तौर पर उन मां—बाप को जिनकी बेटी या बेटियां हिलाकर रख देती हैं। नागपुर के मेरे पत्रकार मित्र पुष्पेंद्र फाल्गुन ने भी अपनी व्यथा पिछले दिनों व्यक्त की है। उनकी चिंता मेरी और मेरे जैसे तमाम लोगों की ही तर​ह वाजिब भी है।

बहरहाल, समाज का 'नग्न सत्य' उजागर करती एक और ताजा घटना पिछले रविवार को देश की राजधानी दिल्ली में घटित हुई, जिससे देश एक बार फिर शर्मसार हो गया। दक्षिण दिल्ली के वसंतविहार इलाके में रविवार की रात्रि सरपट दौड़ती एक बस पेरा मेडिकल की एक छात्रा के साथ उसके मित्र के सामने सामूहिक रुप से ज्यादती की गई। उसे लहूलुहान कर दिया गया और उसके मित्र को क्रूरतापूर्वक निर्वस्त्र कर बाहर फेंक दिया गया। इस घटना को अंजाम देने में 7 लोग शामिल थे। निजी बस के कांच काले थे और भीतर पर्दे भी लगे थे। दिल्ली ही नहीं देश को और समूचे समाज को शर्मसार कर देने वाली इस घटना ने दिल्ली की पहचान पर बट्टा लगा दिया है। वर्षों से 'दिलवालों की दिल्ली' अब बलात्कारियों की दिल्ली बन गई है। रात आठ बजे के बाद लड़कियां घर से बाहर निकलने में डर रही हैं। देश की विभिन्न अदालतों में 24 हजार से ज्यादा मामले लंबित हैं।इनमें से कई तो 10 साल से भी ज्यादा पुराने हैं।

दहला देने वाले आंकड़े


दिल्ली में यह बलात्कार की पहली घटना नहीं थी। 2011 में अकेली दिल्ली में 572 बलात्कार के मामले दर्ज हुए थे। 2012 में 17 दिसंबर तक 635 घटनाएं घटित हो चुकी हैं। केवल दिसंबर की ही बात करें तो इस एक महीने में दिल्ली में बलात्कार की आठ शिकायतें दर्ज हुई हैं। इसके पहले जो घटनाएं घटीं, वे हैं—(1)11 अगस्त, 2012 को दिल्ली में वल्लभपुरा फ्लायओवर पर आठ लोगों ने एक युवती के साथ कार में सामूहिक अत्याचार किया,(2) दस फरवरी 2012 को कांजवाला इलाके में 17 वर्षीय एक बालिका का अपहरण कर उसके साथ दो लोगों ने बलात्कार किया, (3) 18 जनवरी को मणिपुर की बीस वर्षीय युवती के साथ दिल्ली के द्वारका में कार में लिफ्ट देने वाले व्यक्ति ने बलात्कार किया,(4) 27 जून 2011 को उत्तर दिल्ली में तीन युवकों ने बलात्कार किया,(5)24 नवंबर को 2010 में 30 वर्षीय महिला का चार लोगों ने अपहरण कर टाटा 407 में धौलाकुआं के पास बलात्कार किया।

ये तो हांडी के चांवल की मानिंद चंद मामले हैं। एक मामला देश की कानून—व्यवस्था में हो रहे ह्रास का है। 5 जनवरी 2009 को दिल्ली से सटे नोएडा में एक 24 वर्षीय एमबीए की छात्रा 'द ग्रेट इंडिया प्लेस' मॉल से शापिंग कर घर जा रही थी, तभी रास्ते में क्रिकेट खेल रहे युवकों ने उसे कार में खींच लिया और 12 लोगों ने उसके साथ दुराचार किया। ये सभी आरोपी दूसरे दिन पकड़े गए और थोड़े दिन बाद वे जमानत पर रिहा हो गए। अब उस युवती और उसके परिजनों पर बलात्कार का केस वापस लेने के लिए धमकियां दी जा रही है।

तमाशबीन लोगों की संवेदनहीनता


सबसे विचित्र और अफसोसनाक बात ये है कि बलात्कार की घटनाओं के प्रति पुलिस, प्रशासन ही नहीं समाज भी संवेदनहीन होकर बर्ताव करता है। दिल्ली की बस में रविवार की रात्रि जिस युवती के साथ सात नराधमों ने बलात्कार किया, उसे और उसके मित्र को लहूलुहान अवस्था में रास्ते पर फेंक दिया था। युवती निर्वस्त्र थी। वे दिल्ली की कंपकंपाने देने वाली ठंड के थपेड़े खाने को विवश थे। निर्वस़्त्र अवस्था में तड़प रहे इस मजबूर युगल को देखने तमाशबीनों का एक हुजूम इकट्ठा हो गया था, परंतु उन्हें देख रहे किसी भी व्यक्ति को उस लाचार युवती को तन ढांकने के लिए वस्त्र देने की नहीं सूझी। ये सभी तमाशा देखते रहे। इस घटना की सूचना मिलनेके बाद जब दिल्ली पुलिस की पीसीआर वेन घटनास्थल पर पहुची, तब करीबन 50 तमाशबीन वहां मूक होकर खड़े थे।
हद तो तब हो गई, जब तड़पते युगल को पुलिस वेन तक पहुंचाने के लिए पुलिस की मदद करने एक भी व्यक्ति आगे नहीं आया। इस युगल की चीखों से किसी भी व्यक्ति की दिल नहीं पसीजा। लक्जीरियस कारों में वहां से गुजर रहे लोग भी तमाशबीन होकर सब देखते रहे। पुलिस वेन में केवल तीन कांस्टेबल थे। ये जवान ही उन्हें थोड़े बहुत कपड़ों से उसका तन ढंककर वेन तक ले गए। जो समाज ऐसी घटनाओं के लिए पुलिस की निष्क्रियता को जिम्मेदार बताता है, वह समाज कैसा है, यह उसकी एक मिसाल है।

परिचितों से ही सर्वाधिक खतरा


नेशनल क्राइम रेकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, 94 प्रतिशत बलात्कार की शिकार युवती या बालिका के सगे—संबंधी या पारिवारिक मित्रों के द्वारा होते हैं। बलात्कार का शिकार बनी युवतियों में 10.6 प्रतिशत तो 14 वर्ष की बच्चियां होती हैं, जबकि 19 प्रतिशत टीनेजर होती हैं। इसी तरह, दिल्ली सरकार द्वारा कराए गए एक सर्वे के की रिपोर्ट कहती है कि, 85 प्रतिशत दिल्ली की महिलाएं खुद को असुरक्षित महसूस करती हैं, हरेक वर्ग की स़्त्रियां 15 से 19 वर्ष की उम्र में किसी न किसी प्रकार की छेडछाड़ या यौन शोषण का शिकार बनती हैं,पांच में से तीन महिलाओं ने इस बात को स्वीकार किया कि उन्होंने कभी न कभी शारीरिक छेड़छाड़ का सामना किया है, 50 प्रतिशत महिलाओं ने इस बात को स्वीकार किया है कि बस या ट्रेन में उनके साथ छेड़छाड़ हो चुकी है,सबसे अधिक बस, ट्रेन, मेट्रो और सड़कों पर महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार होता है, तीन में से दो महिलाओं ने इस बात को स्वीकार किया है कि पिछले वर्ष में दो से पांच बार छेड़छाड़ की शिकार हुई हैं,65 प्रतिशत महिलाओं की शिकायत है कि उनकी शिकायत के बाद उन्हें कोई मदद या राहत नहीं मिलती, दूसरा उल्लेखनीय तथ्य ये है कि रास्ते से गुजरने वाली किसी युवती के साथ बलात्कार करने वालों में सर्वाधिक युवा अशिक्षित, कम पढ़े लिखे तथा झुग्गी—झोपड़ियों या निचली बस्तियों में रहने वाले होते हैं। दिल्ली की पिछली घटना के सातों आरोपी झोपड़पट्टियों में रहने वाले हैं।

बलात्कारियों को सजा क्या हो?


दिल्ली की इस शर्मनाक घटना के बाद पूरे देश में गुस्सा है। सड़क से लेकर संसद और जनपथ से लेकर राजपथ तक द्रवित हैं। लोगों का गुस्सा और आवेशपूर्ण प्रतिक्रियाएं फेसबुक से लेकर ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर देखने को मिल रही है। इनमें एक प्रमुख मांग बलात्कारियों को फांसी देने की है, परंतु इसमें जोखिम इस बात का है कि फांसी की सजा के डर से वह व्यक्ति बलात्कार के बाद उसकी हत्या कर सकता है। फांसी देने के बजाय बलात्कार का आरोपी भविष्य में सेक्सुअल एक्टिविटीज न कर सके, इसलिए उसके शरीर का केमिकल कास्ट्रेशन कर उसके अंग को निष्क्रिय कर दिया जाना चाहिए। रासायनिक प्रक्रिया से आरोपी को नपुंसक बना दिया जाना चाहिए।  स्पेन और स्वीडन जैसे तमाम देशों में ऐसी सजा का प्रावधान है। बलात्कार की घटना के बाद कई युवतियां पुलिस तक जाने में सामाजिक इज्जत जाने से डरती हैं। बहुत कम लोगों को खबर होगी कि पीड़ित युवती को चिकित्सकीय जांच के दौरान एक बार उस पीड़ा से गुजरना होता है। यह सबसे शर्मनाक बात है और इसे तत्काल बंद करने पर विचार होना चाहिए।

बलात्कार के प्रकरणों का निर्णय एक माह में ही किया जाए, ऐसी फास्ट ट्रेक अदालतों का गठन होना चाहिए। शहरों में रात्रि में गश्त के दौरान सो जाने के बजाय पुलिस को सघन चेकिंग करना चाहिए। पब्लिक ट्रांसपोर्ट, बस, मेट्रो, आटो रिक्शा, जैसे वाहनों पर नजर रखने के लिए जीपीएस टेक्नॉलॉजी का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। चौक—चौराहों पर सीसीटीवी केमरे अधिकाधिक लगाए जाने चाहिए। अमेरिका में एक व्यक्ति जब घर से निकलता है और वापस घर लौटता है तब तक वह 14 सीसीटीवी केमरों में रिकार्ड हो चुका होता है। परिवहन के साथ जुड़े तमाम ड्रायवरों, कंडक्टरों, खास तौर पर स्कूल वेन या स्कूल बस के ड्रायवरों की संपूर्ण जानकारी पुलिस, प्रशासन या सरकार के पास होना चाहिए।

बेशक, बलात्कार समाज में बढ़ता एक गंभीर मर्ज है और उसे रोकना अकेली पुलिस का या सरकार का ही दायित्व नहीं है। हर व्यक्ति, हर संस्था को उसकी रोकथाम के लिए आगे आना होगा। इसके अलावा सतत घटता लिंगानुपात, इंटरनेट पर आसानी से उपलब्ध पोर्न फिल्में, बढ़ता औद्यागिकीकरण, वीडियो गेम्स, शिक्षा तथा संस्कारों की कमी भी ऐसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार है।

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