चंदा बारगल/ धूप-छांव/
शिवसेना सुप्रीमो बालासाहब ठाकरे का मुंबई के शिवाजी पार्क स्थित स्मारक
सोमवार की मध्यरात्रि हटाकर शिवसैनिकों ने अच्छा ही किया...बालासाहब ठाकरे
के निधन को एक माह हो चुका है...स्मारक को हटाने के लिए शिवसेना तैयार होगी
या नहीं, या फिर उसे पुलिस बल की मदद से हटाना पड़ेगा, आदि सवाल विवाद के
जन्मदाता थे...पर शिवसेना ने यह अच्छा ही किया...
शिवसेना
के कार्याध्यक्ष उद्वव ठाकरे की इस मामले में संदिग्ध भूमिका और सांसद
संजय राउत के इस वक्तव्य पर कि 'स्मारक की जगह हमारे लिए राम जन्मभूमि
बराबर पवित्र है' यह साफ नहीं हो पा रहा था कि यह मामला आपसी सामंजस्य से
निपटेगा या विवाद से। उधर, इस मामले में मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण भी
झुकने को तैयार नहीं थे, यह बात ध्यान में आने के बाद शिवसेना को अपनी
'वचनबद्धता' याद आ गई और अस्थायी स्मारक हटा लिया।
शिवसेना को शिवाजी पार्क की अनुमति केवल अंतिम संस्कार और दूसरे दिन की विधि के लिए दी गई थी। खुद शिवसेना ने भी अपने आवेदन में कहा था कि अंतिम क्रिया की विधि संपन्न होने के बाद वे शिवाजी पार्क का स्थान पूर्ववत् कर देंगे...किंतु अभी अंतिम संस्कार संपन्न भी नहीं हुआ था कि शिवसेना के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मनोहर जोशी ने शिवाजी पार्क पर ही स्मारक बनाने की मांग कर दी। उसे हवा देने का काम संजय राउत ने कर दिया।
इन
दोनों नेताओं ने शोक की अवधि में एक नए विवाद को जन्म दे दिया, किंतु
उद्धव ठाकरे के मन में क्या है, वे क्या चाहते हैं, यह तो उस वक्त तय नहीं
होना था, इसलिए असमंजस की स्थिति बन गई....शिवसेना और शोकाकुल ठाकरे परिवार
को संकट में डालकर ये दोनों नेता आखिर चाहते क्या थे? यह सवाल भी मीडिया
ने पूछा। गहरे शोक के चलते ऐसी मांग या चर्चा उचित नहीं कही जा सकती।
शिवसैनिक भी उद्विग्न हो गए। शिवसेना प्रमुख को मृत्यु के बाद पूरे देश से
जो सम्मान मिला, वह अविस्मरणीय है।
जहां तक शिवाजी पार्क की बात है तो वह खेल का मैदान है या मनोरंजन पार्क, यह मुद्दा भी न्यायालय के विचाराधीन है। वहां खेल के अलावा दूसरी गतिविधियों को अनुमति दी जाए या नहीं, यह भी न्यायालय को ही तय करना है। हर साल दशहरे पर मेले के लिए खुद शिवसेना को विशेष अनुमति लेना ही पड़ती है। उसमें भी 'सीआरझेड' का सवाल है ही।
दादर के निवासी और शिवाजी पार्क प्रेमी, शिवसेना और शिवसेना प्रमुख के प्रशंसक थे तो भी वे शिवाजी पार्क पर स्मारक के लिए तैयार नहीं थे। शिवसेना, जिस तरह हठपूर्वक वहां स्मारक बनाना चाहती थी, उससे भविष्य में सुरक्षा का सवाल भी खड़ा होना था। यदि शिवसेना अस्थाई स्मारक हटाने का फैसला पहले ही कर लेती तो अच्छा होता तो विवाद की स्थिति नहीं बनती।
राजनीति कहां करना चाहिए और कहां नहीं, यह भी राजनीति में महत्वपूर्ण है। बालासाहब ताजिंदगी शान से और गर्व के साथ जिए, शिवसेना और ठाकरे परिवार भविष्य में भी ऐसी समझ और संयम दिखाएगी तो ही बालासाहब ठाकरे को सच्ची श्रद्धांजलि होगी और सच्चा अनुसरण भी।
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