चंदा बारगल/ धूप-छांव/ अमेरिका जैसे
देश की दो मुख्य पार्टियां डेमोक्रेटिक पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी के
चुनाव चिन्ह क्रमश गधा और हाथी है। भारत की बात बाद में, इथियोपिया जैसे
गरीब या लिबिया-ईजिप्त जैसे भ्रष्ट देशों में कोई भी पार्टी गधों की पार्टी
के रूप में पहचानी जाना पसंद करती है।
अमेरिका में सतत दूसरी मर्तबा सत्ता में आए बराक ओबामा की डेमोक्रेटिक
पार्टी का चुनाव चिन्ह 'गधा' है और उन्होंने उसके लिए वोट देने की अपील की
थी। हमारे यहां कोई गधे के लिए वोट मांग सकता है क्या?
ऐसा कहा जाता है कि 1828 में अमेरिका के चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार एंड्रयू जेक्सन खड़े थे और उनके प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार ने जैक्सन अर्थात 'जेकास' कहकर अमेरिका की व्यंग्यात्मक भाषा में मजाक की थी। 'जेकास' का मतलब गधा होता है। लोगों ने इस मजाक का बहुत मजा लिया था। उस जमाने के मशहूर कार्टूनिस्ट थॉमस नास्टे ने 'हार्पर्स विकली' में डेमोक्रेटिक पार्टी को गधा बताकर बहुत-से व्यंग्य -चित्र बनाए थे।
जेक्सन ने व्यंग्यों के वार सहज भाव से झेल लिए थे और कहा था कि 'हां भाई, हम तो गधे हैं बस।' इसके बाद देश के तमाम कार्टूनिस्टों ने डेमोक्रेटिक पार्टी को प्रतीकात्मक तौर पर समर्थकों के दिलोदिमाग में बैठाने के लिए गधे का ही इस्तेमाल किया। डेमोक्रेटिक पार्टी के कर्णधारों ने बाद में गधे के चुनाव चिन्ह को कायम रखने का तय किया। तब से यह पार्टी 'वोट फॉर डंकी' की अपील करती आई है।
कार्टूनिस्ट थॉमस नास्ट ने जब 'गधे' को चुनाव चिन्ह प्रचलित किया, तब वे युवा थे। इस कार्टून के बाद उनकी ख्याति बढ़ गई। नास्ट ने ताजिंदगी 'हार्पर्स विकली' के लिए ही काम किया। संयोग देखिए कि ठीक 46 साल बाद 1874 में नास्ट ने फिर एक कार्टून बनाया, जिसमें उन्होंने अमेरिका जैसी महासत्ता के दूसरे प्रमुख दल रिपब्लिकन को 'हाथी' चुनाव चिन्ह देने के निमित्त बने।
जहां तक भारत की बात है, आजादी के बाद कांग्रेस का चुनाव चिन्ह गाय-बछड़ा था पर 1969 में जब कांग्रेस विभाजित हो गई तो सिंडीकेट और इंडीकेट दो गुट बने और स्व. इंदिरा गांधी ने 1980 के चुनाव के पूर्व पार्टी के लिए नया चुनाव चिन्ह लेने का फैसला किया। तब चुनाव आयुक्त के पास हाथ का पंजा और हाथी जैसे चुनाव चिन्ह उपलब्ध थे। इंदिराजी ने हाथ का पंजा लेना मंजूर किया, जो एकता और परिबल का प्रतीक है। विरोधी दल पंजे को थप्पड़ बताकर नकारात्मक चुनाव प्रचार का मौका झड़प लेते हैं, जबकि कांग्रेस ने 'विकास का साथ, पंजे के साथ' का नारा देश भर में दे दिया है।
दूसरे प्रमुख दल भाजपा का चुनाव चिन्ह 'कमल' है। विरोधी दल जब-जब टीका-टिप्पणी करते हैं, तब भाजपा नेता बड़ी आसानी से प्रत्युत्तर देते हैं कि 'आप चाहे जितना कीचड़ उछालो, हमारे लिए अच्छा है, क्योंकि कमल कीचड़ में खिलता है।
1980 में जब भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई, उसके पहले यह पार्टी 'जनसंघ' थी, जिसका चुनाव चिन्ह 'दीपक' था। 1951 में पं. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने 'जनसंघ' की स्थापना की थी। जनसंघ उस जमाने में कांग्रेस की घोर विरोधी पार्टी थी।
मुलायमसिंह यादव की समाजवादी पार्टी का चुनाव चिन्ह सायकल है, यह सब जानते हैं। क्षेत्रीय दलों के चुनाव चिन्ह भी बड़े रोचक हैं। जम्मू कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस का चुनाव चिन्ह पेन यानी कलम है तो उत्तराखंड के क्रांति दल का चुनाव चिन्ह ही 'कुर्सी है। यूपीए सरकार की हरवक्त नाक में दम करने वाली ममता बनर्जी की पार्टी का चुनाव चिन्ह ही 'तृण'है। घास के उगते पत्ते उनका चिन्ह है। मराठा क्षत्रप शरद पवार की पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस का चुनाव चिन्ह 'घड़ी' है जो समय का प्रतीक है। गुजरात में पटेलों के सरदार केशुभाई पटेल की गुजरात परिवर्तन पार्टी पहली बार चुनावी अखाड़े में उतरी है। उनकी पार्टी का चुनाव चिन्ह 'बेट' यानी बल्ला है। प्रचार के दौरान लोगों ने मजाक में कहा भी कि केशुभाई का बेट कितने रन ठोकता है, उनके बेट्समेन खाता खोल पाते हैं या नहीं, या केशुभाई की टीम को दहाई तक भी पहुंचा पाएंगे या नहीं।
चुनाव आयोग के पास अभी भी 200 चुनाव चिन्ह ऐसे हैं जो किसी पार्टी या निर्दलीय को आवंटित किए जाते हैं। वैसे तो हमें हर चुनाव सूरज, कार, ताला—चाबी, बंगला, शेर, हवाई जहाज, ट्रेक्टर, चश्मा, हल सीढ़ी, पुस्तक, इलेक्ट्रिक बल्ब आदि चुनाव चिन्ह देखने को मिल जाते हैं। कुछ साल पहले इंदौर नगर निगम के चुनाव में एक उम्मीदवार को 'दो पत्ती' चुनाव चिन्ह आवंटित हुआ। वह उम्मीदवार अपने चुनाव प्रचार में जुट गया, पर उसके उसके विरोधियों ने नारा दे दिया, 'दो पत्ती, दो बत्ती' सचमुच मतदाताओं ने उसको बत्ती दे दी, यानि हरा दिया। है ना! चुनाव चिन्हों की रोचक कहानी।
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