शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

ये कैसे 'गड़बड़'करी?


चंदा बारगल/धूप-छांव/ भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितीन गडकरी के हिस्से में हर रोज नए विवाद या घपले—घोटाले जुड़ते जा रहे हैं। स्वामी विवेकानंद और माफिया डॉन दाउद इब्राहिम के आईक्यू की तुलना कर उन्होंने अपनी अपरिपक्वता का ही परिचय दिया है। गडकरी ने ऐसी गड़बड़ पहले भी की है, कहने का आशय यह कि पहले भी उनकी जुबान फिसली है और उन्हें माफी मांगना पड़ी है। कदाचित, गडकरी भाजपा के ऐसे पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष होंगे, जिन्होंने सर्वाधिक मर्तबा माफी मांगी है। 

देश के सबसे बड़े विरोधी दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष के खिलाफ ही जब घपलों—घोटालों के 'दाग' हों, तो हम यह कदापि नहीं कह सकते कि 'दाग' अच्छे हैं। अब कम से कम वे या उनकी पार्टी उस भ्रष्टाचार के मुद्दे पर तो अपना मुंह नहीं खोल पाएगी, जो उनका अब तक का सबसे बड़ा राजनीतिक हथियार था। गडकरी के घपले—घोटालों की फेहरिश्त भी कोई छोटी नहीं है। उनकी कंपनी 'पूर्ति' के घपले—घोटालों की सूची भी कोई कम कोई छोटी नहीं है।  उनकी कंपनियों के पते भी मुंबई के अंधेरी की अंधेरी  उनकी कंपनियों के पते भी मुंबई के अंधेरी की झोपड़पट्टियों के निकले हैं और ड्रयवर तथा वॉचमेन जैसे अदने कर्मचारी उनकी कंपनियों के डायरेक्टर निकले हैं। इन आरोपों का सही जवाब भी अब तक वे नहीं सके हैं। गडकरी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद शायद एक भी ऐसा काम नहीं किया है, जिसे उल्लेखनीय कहा जा सके। अगले महीने दिसंबर में उनकी पहली पारी खत्म हो रही है और वे दूसरी बार अध्यक्ष बनने का सपना देख रहे हैं। उनके लिए पार्टी के संविधान में भी संशोधन किया गया। उन्हें आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत का प्रिय माना जाता है, इसलिए तमाम लोग उन्हें 'मोहनप्यारे' भी कहते हैं। दूसरी मर्तबा अध्यक्ष बनने के लिए उन्होंने कई समझौते भी किए। पार्टी के लोग यह भी आरोप लगाते हैं कि भाजपा के दूसरे बड़े नेताओं के इशारे पर और उन्हें खुश रखने के लिए ही गडकरी ने कई निर्णय लिए हैं। 

गडकरी के 'गड़बड़'झाले को देखें तो मजाक में यही कहा जा सकता है कि कारसेवा करने वाले अब कारनामे करने लग गए हैं। सतही तौर पर देखें तो ऐसा लग रहा है कि गडकरी का विरोध थम गया है, लेकिन गहराई में जाएं तो पता लगता है कि चिंगारी अभी भी राख में है और वह कभी भी 'शोला' बन सकती है। भाजपा के वरिष्ठ नेता और विधिवेत्ता राम जेठमलानी तो खुले आम कह चुके हैं कि यह व्यक्ति अध्यक्ष पद के रुप में नहीं चलेगा, उन्हें अध्यक्ष पद छोड़ देना चाहिए।

'बाप जैसा बेटा' जैसी उक्ति को सार्थक करते हुए राम जेठमलानी के पुत्र वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी तो अपने पिता की शैली में बोले नहीं पर उन्होंने भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्यता को यह कहते हुए तिलांजलि दे दी कि गडकरी के नेतृत्व में काम करना नैतिक और बौद्धिक तौर पर उचित नहीं होगा। प़ुत्र महेश के इस्तीफे की तारीफ कर राम जेठमलानी तो यहां तक कह गए कि पूर्व केंद्रीय वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा, पूर्व केंद्रीय विदेश मंत्री जसवंतसिंह और शत्रुघ्न सिन्हा सहित भाजपा के दूसरे बड़े नेता भी नितीन गडकरी की कथनी और करनी से खफा हैं, पर वे खुलकर सामने नहीं आ रहे। चर्चा तो यह भी है कि आरएसएस ने भी नितीन गडकरी को दूसरी बार अध्यक्ष बनाए जाने से हाथ खींच लिए हैं और चतुराई से यह कह दिया है कि भाजपा जाने और गडकरी जाने। चेन्नई के केलम्बक्क में पिछले दिनों हुई आरएसएस की बैठक के बाद जनरल सेक्रेट्री सुरेश जोशी ने तो यहां तक कह दिया कि नितीन गडकरी के खिलाफ जो आरोप लगे हैं, उनकी जांच होना जरूरी है। 

यूं देखें तो भाजपा ही गडकरी को लेकर दोफाड़ हो गई है। अनेक वरिष्ठ नेता ऐसे हैं जो नहीं चाहते कि गडकरी की दूसरी बार भी अध्यक्ष पद पर ताजपोशी हो, जबकि कुछ नेता अभी भी गडकरी को बचाने के लिए अंदरखाने में खेल कर रहे हैं। गडकरी पार्टी के अध्यक्ष बने रहे तो हम जो चाहेंगे, वो करवा लेंगे, ऐसी सोच वाले तमाम नेता अपने हित साधने के लिए पार्टी की साख और इज्जत दोनों दांव पर लगा रहे हैं। गडकरी का तो जो होना है वो हो जाएगा, पर इस'गड़बड़'झाले से पार्टी का जो नुकसान होगा,वह न केवल महंगा पड़ेगा, बल्कि उसकी भरपाई भी मुश्किल होगी। 

पिछले हफ्ते ही फिजां में यह चर्चा थी कि गडकरी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देंगे, किंतु उसके बाद दिल्ली में कोर कमेटी की बैठक हुई, जिसमें वरिष्ठ नेता आडवाणी हाजिर नहीं हुए। गडकरी के घर पर ही वरिष्ठ नेताओं की बैठक हुई, जिसमें तय हो गया कि गडकरी इस्तीफा नहीं देंगे। गडकरी को तयशुदा कार्यक्रम के मुताबिक, हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में प्रचार के लिए जाना था। कमाल तो देखिए हिमाचल प्रदेश के पार्टी के कर्णधारों ने ही गडकरी से तौबा कर कह दिया कि हमें आपकी जरूरत नहीं। शायद उन्हें भय था कि गडकरी आएंगे तो पार्टी को फायदा तो दूर नुकसान बढ़ने की आशंका अधिक होगी। हिमाचल प्रदेश में चुनाव तो निपट गए और यह चुनाव ऐसा था, जिसमें पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कोई भूमिका नहीं रही। यानी, यह कहा जा सकता है कि गडकरी अब पार्टी के लिए फायदे के बजाय नुकसानदायक अधिक बन गए हैं। गडकरी ने कुछ वक्त पूर्व अपना वजन कम करने के लिए आपरेशन कराया था। भाजपा के ही एक नेता ने मजाक में कहा कि गडकरी के वजन का तो जो होना है होगा, पर पार्टी पर उनका 'वजन' बढता जा रहा है और ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन पार्टी इस भार के नीचे ही दब जाएगी।

1 टिप्पणी:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...