शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

आखिर, कोमल कलियों पर कहर क्यों?

हरियाणा, यूं तो देश के तमाम छोटे राज्यों में से एक है पर वह सदैव सुर्खियों में रहता आया है. कभी भजनलाल तो कभी बंसीलाल तो कभी देवीलाल- हरियाणा के इन लालों ने हरि-भूमि को सदैव सुर्खियों में रखा है. संप्रति, फिजा उर्फ अनुराधा बाली की खुदकुशी मामले ने फिजां मं रंग घोला हुआ है. फिजा, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल की बहू थी. फिजा का शव उसके ही घर से बरामद किया गया है.


फिजा ने आत्महत्या की है या उसकी हत्या की गई है, यह अभी साफ नहीं हो पाया है. फिजा के ठीक पहले 23 वर्षीय एयर होस्टेस गीतिका शर्मा के आत्महत्या करने से हरियाणा सहित पूरे देश में खलबली मच गई. इस मामले में हरियाणा के गृह राज्यमंत्री गोपाल कांडा का नाम उछलने से उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. इन दोनों मामलों ने राजनीति में सक्रिय पुरुषों के इर्द-गिर्द रहने वाली महिलाओं, युवतियों के भविष्य पर सवाल खड़ा कर दिया है.

अनुराधा बाली का विवाह भजनलाल के पुत्र चंद्रमोहन से हुआ था. विवाह के वक्त चंद्रमोहन हरियाणा के उप मुख्यमंत्री थे. यह मामला उजागर होने पर उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था, वहीं गीतिका शर्मा के मामले में भी गोपाल कांडा को गृह राज्यमंत्री पद से हाथ धोना पड़ा है. यह भी एक संयोग है कि इन दोनों मामलों के वक्त भूपिंदरसिंह हुड्डा ही मुख्यमंत्री हैं. फिजा या गीतिका की जिंदगी में घटित ये घटनाएं किसी सिनेकथा जैसी लगती है. शुरूआत में रोमांच और रोमांस से भरपूर इन घटनाओं का अंत अत्यंत दुखद और दर्दनाक होकर रोंगटे खड़े करने वाला है. ऐसी घटनाओं से यह सवाल भी उत्पन्न होता है कि हमारे राजनेता अपनी हवस की खातिर, कितने गिर सकते हैं.

अनुराधा बाली की बात करें तो वे पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में वकालत करतीं थीं. इसके बाद उनकी नियुक्ति हरियाणा के सहायक विधि महाधिवक्ता पद पर हुई. उनका विवाह हरियाणा के ही एक व्यवसायी से हुआ था. उनका वैवाहिक जीवन केवल एक साल ही टिक पाया. इसके बाद अनुराधा की लाईफ में चंद्रमोहन का प्रवेश हुआ. वे भी शादीशुदा थे. इसके बावजूद वे फिजा के प्रेम-जाल में उलझ गए. एक बार दिल मिले तो फिर परिवार, समाज और जमाने की परवाह नहीं रहती. इन दोनों ने भी नहीं की. नवंबर 2008 में दोनों गायब हो गए. 

हरियाणा के एक प्रभावशाली राजघराने का व्यक्ति और भी राज्य का उप मुख्यमंत्री गायब होने से खलबली मचना स्वाभाविक था. 40 दिनों के बाद दोनों प्रकट हुए. चंद्रमोहन ने मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया था और चांद मोहम्मद हो गए थे तो अनुराधा भी फिजा हो गई थी. हिुदू धर्म के अनुसार, दोनों विवाह नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने धर्म-परिवर्तन कर लिया था. चंद्रमोहन की तब बहुत निंदा हुई थी. आखिरकार, चंद्रमोहन को उप मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. अनुराधा को भी सहायक महाधिवक्ता पद छोड़ना पड़ा था.

 इसके बाद एक-सवा महीने में ही दोनों में तकरार होने लगी थी और चंद्रमोहन उसे छोड़कर चल दिए थे. दोनों के बीच की तकरार पुलिस थाने तक पहुंच गई थी. अनुराधा बाली ने चंद्रमोहन के खिलाफ बलात्कार, धोखाधड़ी आदि की शिकायत दर्ज कराई थी. फिजा ने इसके बाद ‘मुङो इस जंगल से बचाओ’ रियलिटी शो में भी भाग लिया था. साल भर फिजा ने नशीली गोलियां खाकर खुदकुशी की कोशिश की थी. यह खेल शुरू था, तभी चंद्रमोहन ने अपने मोबाइल से अनुराधा को तलाक दे दिया. अब उसी अनुराधा उर्फ फिजा का शव उसके ही घर से संदिग्धावस्था में बरामद हुआ, वह भी सड़ी हुई हालत में. शव की हालत को देखते हुए कहना भी मुश्किल है कि यह आत्महत्या है हत्या?

फिजा के मुकाबले उम्र में छोटी गीतिका शर्मा का मामला वाकई सोचनीय है. केवल 17 साल की उम्र में वह गोपाल गोयल कांडा की विमान कंपनी में एयर होस्टेस की नौकरी करने लगी परंतु 2009 में कंपनी बंद होने पर उसने उसी बैनर की कंपनी में नौकरी करने के बजाय अमीरात एयरलाइंस में नौकरी कर ली. दुबई में उसका ट्रेनिंग भी शुरू हो गया. वह चरित्रहीन है, कंपनी का उस पर कर्ज है, इस आशय के मेल कांडा ने किए और जब वे मेल अमीरात एयरलाइंस को मिले तो उसे नौकरी से निकाल दिया गया. 

इसके बाद कांडा उसे अपनी प}ी की मदद से कंपनी में वापस लाने में कामयाब हो गए. उसे कंपनी का संचालक बना दिया गया. उसकी खातिरदारी में बीएमडब्ल्यू कार भी दी गई, लेकिन कांडा द्वारा किए जा रहे र्दुव्‍यवहार से क्षुब्ध होकर उसने आखिरकार 23 वें साल में ही मौत को गले लगा लिया. यह है गीतिका शर्मा की दुखद कथा. वह जिस उम्र में एक कंपनी की डायरेक्टर बन गई, उस उम्र में ज्यादातर लड़के-लड़कियां ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट होने के लिए भाग-दौड़ करते हैं. इस कारण अपरिपक्व गीतिका को सुनियोजित रूप से फंसाए जाने की बात पता चलती है. वैसे गोपाल कांडा की पृष्ठभूमि देखें तो यह बात और साफ हो जाती है. भूपिंदरसिंह हुड्डा की सरकार को समर्थन देने के लिए निर्दलियों को उनके पक्ष में करने में कांडा का बड़ा योगदान था. उन्हें नैतिक-अनैतिक किसी काम से कोई परहेज नहीं था. यह सब गीतिका को पता था, फिर भी गीतिका गोपाल कांडा के जाल में फंसती ही गई और उसकी परिणति आत्महत्या में हुई.

आज की युवतियां, किशोरियां केरियर के पीछे भागती-दौड़ती हैं. उन्हें सक्सेस चाहिए होती है, वह भी फटाफट. उसके लिए वे कुछ भी करने का तैयार होती हैं. ऐसी युवतियों के लिए राजनेता तुरुप का इक्का साबित होते हैं. मौजूदा राजनीति यानी धन की टकसाल और राजनेता कड़क करंसी. ऐसे में बिना किसी मेहनत के, बिना किसी कोशिश के यदि सारे सुख मिल जाएं तो कौन इनकार करेगा, लेकिन ऐसी सुख-सुविधा कब जानलेवा बन जाती है, यह गीतिका के मामले से साफ हो जाती है. गीतिका, इस भ्रष्ट राजनीति का हांडी का चावल है. 

अनुराधा बाली की जिंदगी में जब चंद्रमोहन आए थे, तब अविवाहित थे. ऐसा होते हुए भी कानून पढ़ी अनुराधा जैसी महिला को वो टाल नहीं पाए. यहीं उसकी पहली शिकस्त हो गई थी. उसके बाद उसकी अर्थी ही उठ गई. अब इन घटनाओं की जांच होगी, कानून के पलड़े पर उन्हें जांचा-परखा जाएगा. मगर मुद्दे की बात यह है कि आखिर हमारे नेतागण कब तक गीतिका जैसी कोमल कलियों को खिलने के पहले ही मुरझाने को विवश करते रहेंगे?

1 टिप्पणी:

  1. खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर
    आधारित है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल निशाद और
    बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी
    किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री
    भी झलकता है...

    हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया है.
    .. वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
    ..
    Also see my website :: खरगोश

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