गुरुवार, 5 जुलाई 2012

विधायकों को कार! शासकीय धन की लूटमार!!

उत्तरप्रदेश, देश का एक ऐसा राज्य है जहां शासकीय आदेश, कायदे-कानून की कोई ग्यारंटी नहीं ले सकता। पहले मायावती सरकार ने करोड़ों रुपए की शासकीय निधि पानी में बहाते हुए प्रतिमाएं और स्मारक तान दिए, उन पर आज भी उलटी-सीधी चर्चा जारी है तो अभी-अभी सरकार में आए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सरकार ने उत्तरप्रदेश के विधायकों को उनकी विधायक निधि से बीस लाख रुपए तक की कार देने का अजीबोगरीब निर्णय लिया है.


सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी ने ऐसा यदि अपने चुनाव घोषणा-पत्र में कहा भी हो तो यह खैरात बांटना सरकार के बूते में नहीं. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने थोड़ दिन पहले ही यह फतवा जारी किया था कि उनके मंत्री महंगी वस्तुएं भेंट में स्वीकार नहीं करें, सार्वजनिक समारोह में सोने चांदी के मुकुट धारण नहीं करें और सभी मंत्री अपनी संपत्ति घोषित करें. मंत्रीगण इसका पालन करते कि विधायकों को शासकीय निधि से कार देने पर बवाल हो गया. इस फरमान के बाद यह पूछा जा सकता है कि आखिर, बसपा और सपा में फर्क क्या है? सरकार मायावती की हो या यादव की, शासकीय निधि की अपनी सुविधानुसार बंदरबांट चालू ही रहना है.

जनप्रतिनिधियों द्वारा शासकीय धन को लूटने में अकेला उत्तरप्रदेश ही आगे है, ऐसा नहीं है. दूसरे राज्य भी अलग-अलग रास्तों से शासकीय धन पर डाका डालते हैं. बीच में कर्नाटक के विधायकों ने आईपेड की मांग की थी, वह मंजूर भी हो गई थी. विधायक-सांसद अपनी वेतन-वृद्धि और अन्य लाभों के लिए विधानसभा और संसद में कैसे एक हो जाते हैं, यह हम समय-समय पर देख चुके हैं. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव गरीब विधायकों को आगे कर अपने प्रस्ताव की कितनी भी सिफारिश करें तो भी यह एकपक्षीय निर्णय होने से बसपा, कांग्रेस और भाजपा ने उसका विरोध किया है पर उनकी सरकारों ने इसके पूर्व अपने कार्यकाल में जो काला-पीला किया, 

वह स्वीकार करने योग्य नहीं होने से उनके विरोध का कोई औचित्य नहीं. वे केवल विरोध के लिए विरोध कर रहे हैं. उत्तरप्रदेश विधानसभा या विधान परिषद के विधायकों की संख्या देखें तो सौ करोड़ से ज्यादा का चूना लगना तय है. हकीकत में तो अब वक्त आ गया है, जब हमें विधायक-सांसद निधि पर पुनर्विचार करने की जरूरत है. यह निधि जन प्रतिनिधियों को उनके चुनाव क्षेत्र में स्थानीय विकास के लिए दी जाती है. जो काम शासकीय मापदंड में नहीं आते अथवा शासकीय निधि जिन क्षेत्रों में उपलब्ध नहीं होती, वहां विधायक या सांसद अपनी इच्छा से उन कार्यो को कर सकें, इसलिए यह निधि दी जाती है पर हकीकत में ऐसा होता है क्या? यह वाकई, शोध का विषय है. विधायक-सांसद निधि तुरंत बंद कर देना चाहिए. इसके लिए केंद्र सरकार को पहल करना होगी. 

यदि विधायक निधि का प्रावधान ही नहीं होता तो कार लेने का प्रस्ताव ही नहीं आता. अब इस रोग का इलाज करने के बजाय उसे समूल नष्ट कैसे किया जा सकता है, इस बात पर चर्चा होना चाहिए. जो जन प्रतिनिधि चुनाव में करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाते हैं, उनकी क्या एक अदद कार लेने की हैसियत नहीं, इस पर कोई भी विश्वास नहीं करेगा. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपनी संपत्ति घोषित करते हुए कहा है कि उनके पास एक भी कार नहीं है. क्या लोग इस पर विश्वास करेंगे, नहीं इसलिए यह पूरा मामला शासकीय धन पर डाका डालने जैसा है. लोकतंत्र में ऐसे कृत्यों को रोकने के लिए ही अण्णा हजारे के भ्रष्टाचार निमूलन आंदोलन को ताकत देने की जरूरत हैं.

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