शनिवार, 7 जुलाई 2012

अबू पकड़ा तो गया, अब आगे क्या?

एक व्यक्ति को एक दिन जादुई चिराग मिला। उसने जादुई चिराग को उठाया और उस पर हाथ मारा। इतना पढ़कर आप सोचेंगे, अब कोई जिन्न-विन्न निकलेगा, पर न जिन्न निकला, न विन्न। चिराग पर हाथ मारते ही एक जोरदार धमाका हुआ और उस धमाके में 10 मारे गए, 20 जख्मी हो गए। सबक: जादुई चिराग का जमाना कब से गया। अब किसी भी लावारिस वस्तु को हाथ न लगाएं। कितनी ही वस्तुएं ‘अलाउद्दीन’ की नहीं, मुजाहिद्दीन की भी हो सकती हैं. मुंबई की लोकल ट्रेनों में oंृखलाबद्ध बम विस्फोट होने के बाद यह एसएमएस धड़ाधड़ एक-दूसरे को भेजे गए थे। यह मेसेज पढ़कर लोग भले ही एकबारगी हंसें हों पर ऐसे बम धमाकों का मंजर जरूर उनके जेहन में आया होगा। बम धमाके की वह घटना अनायास तारी हो जाती है और आदमी सोचने को मजबूर हो जाता है कि आखिर, देश में यह सब कब तक चलता रहेगा?

26 नवंबर 2008 को समुद्री मार्ग से पाकिस्तान से आए 10 आतंकवादियों ने मुंबई में कोहराम मचाते हुए  160 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था। मुंबई की शान कही जाने वाली फाइव स्टार होटल ‘ताज’ मशीनगनों और ग्रेनेड के धमाकों से थरथरा रही थी। बुलेटप्रूफ जेकेट्स पहनकर मीडियाकर्मी लाइव कवरेज कर रहे थे। पाकिस्तान के कराची में कंट्रोल रूम में बैठकर मौत का यह मंजर लाइव देख रहे आतंकवादियों के आका खुश हो रहे थे और सेटेलाइट फोन की मदद से आतंकवादियों को हुक्म दे रहे थे कि ग्रेनेड फेंको, कोई जिंदा नहीं बचना चाहिए। आप सबको जन्नत मिलेगी और वहां हुस्न की परियां।

हमले के मंजर देख ये लोग खुश हो रहे थे। लोगों को मरते, डरते, सहमते और तड़पते देख उन्हें पैशाचिक आनंद मिल रहा था। ऑपरेशन सक्सेस हो गया था, लेकिन अफसोस कि अजमल कसाब जिंदा पकड़ा गया था। आतंकवादियों और पाकिस्तान का पर्दाफाश हो गया था। कराची में जहां कंट्रोल रूम बनाया गया था, वह इलाका वीवीआईपी का बेहद सुरक्षित था। सवाल उठना लाजिमी है कि पाकिस्तानी सेना और पाकिस्तानी जासूसी एजेंसी आईएसआई की मेहरबानी के बिना क्या यह संभव था?

कराची के कंट्रोल रूम में बैठे-बैठे आतंकवादियों को मार्गदर्शन करने वाले आतंकवादियों में से एक अबू जिंदाल अब दिल्ली पुलिस की गिरफ्त में हैं। अबू वैसे तो 21 जून को ही पकड़ में आ गया था, लेकिन जानकारी जान बूझकर छिपाई गई। पहले यह कहा गया कि अबू को दिल्ली के एयरपोर्ट से पकड़ा गया है किंतु बाद में यह खबर आई कि सऊदी अरब की मदद से उसे भारत के सुपुर्द किया गया है। भारत की जासूसी एजेंसी रॉ और इंटेलिजेंस ब्यूरो लंबे समय से अबू  के पीछे पड़ी थी और आखिरकार उसे सफलता मिल ही गई। हमें सऊदी अरब सरकार और हमारे कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों की भी तारीफ करना होगी।

अबू हमजा के मामले में, लाख टके का सवाल, अब आगे क्या होगा? उसकी धरपकड़ के बाद मुंबई हमले की तमाम बातें दोहराई गईं तो ऐसा लगा जैसे पुराने जख्म ताजा हो गए। मुंबई के एक पुलिस अधिकारी का कहना था कि हमारा एक मेहमान और बढ़ गया। अब कसाब की ही तरह उसकी भी खातिरदारी करना होगी। बरसों केस चलेगा। हम एक ही बात साबित कर सकेंगे कि हम ही नहीं कहते कि इस घटना में पाकिस्तानी सेना और आईएसआई का हाथ है, देखो अबू हमजा भी कह रहा है। सवाल उठता है कि अभी तुम्हें और कितने सबूत चाहिए? अबू ने जो कहा है, कसाब उसके पहले बहुत कुछ कह चुका है। आतंकवादी डेविड हेडली भी मुंबई हमलों के बारे में बहुत कुछ चुका है। थोड़े बहुत राज मिलेंगे, बाकी तो बरसों-बरस केस चलेगा और सरकार करोड़ों रुपए खर्च करेगी।

मुंबई हमलों में जिंदा पकड़े गए आतंकी कसाब को अदालत ने फांसी की सजा सुनाई है। फांसी कब होगी? किसी को नहीं पता। कसाब को लेकर एक जोक चला था कि एक सॉफ्टवेयर कंपनी ने नया सॉफ्टवेयर बनाया है, उसका नाम रखा है कसाब। कंपनी ने दावा किया कि यह सॉफ्टवेयर कभी हेंग नहीं होता। कसाब के पीछे अब तक करोड़ों रुपए खर्च हो चुके हैं और कितने रुपए खर्च होंगे, कोई नहीं जानता। अब दूसरा किस्सा देखिए। भारत की संसद पर हुए आतंकी हमले के मामले में अफजल गुरू को फांसी की सजा सुनाई गई है। अफजल गुरू को फांसी कब होगी? कोई नहीं जानता। हमारे स्व. प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों को फांसी देने की तारीख मुकर्रर हो गई, उसके बाद ऐन पहले फिल्मी घटना की तरह फांसी अटक गई।

अमेरिका पाकिस्तान के अबोटाबाद में छुपे कुख्यात आतंकी ओसामा बिन लादेन को उसके घर में घुसकर मार देता है। घटना सार्वजनिक हो उसके पहले लादेन की लाश को भी समुद्र में फेंक देता है। ड्रोन हमला कर अनेक आतंकवादियों को खत्म दिया। ईराक के सद्दाम हुसैन को 13 दिसंबर 2003 को जिंदा पकड़ा और उस पर फटाफट केस चलाकर केवल तीन साल में ही 30 दिसंबर 2006 को फांसी पर लटका दिया। कहने का मतलब यह कतई नहीं कि आतंकवादियों को फौरन मार दिया जाना चाहिए। हमें मानवाधिकार को मानना चाहिए। हर मनुष्य को खुद को बचाने का अधिकार है। हमें सारे काम संवैधानिक नियमों के तहत ही करना चाहिए। ये तमाम बातें अच्छी हैं, लेकिन उसकी भी कोई सीमा, मर्यादा तो होना चाहिए ना? आतंकवाद से लड़ सकें, ऐसे सख्त कानूनों की हमारे देश में जरूरत है। साथ ही, यह भी जरूरी है कि आतंकवादियों के खिलाफ केस फटाफट चले, गुनाहगारों को सजा मिले और मामलों का फैसला तुरंत आए, उसकी एक समय-सीमा भी तय होना जरूरी है। यदि हमारे देश में इतना भी हो जाए तो यह बहुत बड़ी बात होगी।

आतंकवाद की हरेक घटना से पाकिस्तान जुड़ा होता है, लेकिन आरोप लगने पर वह खुद को पाक-साफ बताने से नहीं चूकता। हालांकि उसका यह बयान किसी के भी गले नहीं उतरता। अमेरिका ने जिस पर एक करोड़ डॉलर यानी 50 करोड़ रुपए का ईनाम घोषित किया है, वह हाफिज सईद पाकिस्तान में आराम से घूमता है। विमान का अपहरण कर मुक्त कराया गया आतंकी मौलाना मसूद अजहर के भी पाकिस्तान में होने की संभावना है। दाऊद इब्राहिम कास्कर भी पाकिस्तान में ही है। इस बात में जरूर दम है कि आतंकवादी संगठनों पर पाकिस्तान का कोई नियंत्रण नहीं है। इसके ठीक उलट आतंकवादी संगठन पाकिस्तान सरकार को नचाते हैं। सरबजीत की रिहा करने की घोषणा होती है और छोड़ा जाता है सुरजीत को। यह कोई प्रिटिंग मिस्टेक नहीं हो सकती, बल्कि इसके पीछे कट्टर आतंकवादी संगठनों का दबाव था।

यूं तो पाकिस्तान खुद आतंकवाद का शिकार हो चुका है। आतंकी कलह के चलते ही पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो मौत के घाट उतार दी गई। पाकिस्तान-अफगानिस्तान की सीमा पर अभी पिछले हफ्ते ही तहरीक-ए-तालिबान और पाकिस्तानी सैनिकों के बीच हुई मुठभेड़ में 17 पाकिस्तानी सैनिकों के सर कलम कर दिए गए। तालिबानियों ने पूरी घटना की शूटिंग कर 5 मिनट 25 सेकंड की क्लिप बनाई और पाकिस्तान सरकार के हवाले कर दी। इस वीडीयो क्लिप में तहरीक-ए-तालिबान के  पाकिस्तान प्रमुख हकीमुल्लाह महसूद और स्वात घाटी के तालिबान प्रमुख मौलाना फजलुल्लाह को भी दिखाया गया और संदेश दिया गया, ‘देख लो तुम्हारे सैनिकों के सर। हमसे टकराने वाले का यही अंजाम होगा।’ इससे एक बात साबित होती है कि पाकिस्तान अपने देश में चलने वाले आतंकी अड्डों को बंद नहीं कर पाने की स्थिति में नहीं है। वह चाहकर भी इन अड्डों को बंद नहीं कर सकता और उससे ऐसी कोई भी अपेक्षा करना बेमानी है। भारत की सुरक्षा की जिम्मेदारी हमें ही उठाना है और उसके लिए जरूरी है सख्त से सख्त कानूनों की और आतंकी मामलों के त्वरित निराकरण की। अबू जिंदाल का पकड़ा जाना, बेशक हमारे लिए एक बड़ी घटना है, मगर इस केस का फैसला त्वरित आना भी जरूरी है। अब तो यह मजाक लगने लगा है कि आतंकवादियों के लिए सबसे सुरक्षित जगह भारत की जेल है। पता नहीं, कसाब की तरह हमें अब अबू को कितने वर्षो तक पालना-पोसना पड़ेगा? 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...