ये हैं राजू वैष्णव..गुजरात के वडोदरा शहर के ओल्ड पादरा रोड पर स्थित एक ढाबे के संचालक..हैं तो कुंवारे पर इनकी कुल 12 मानस संतानें हैं..छह पढ़-लिखकर विदेशों में सेटल हो गई हैं तो छह वडोदरा के स्कूल कॉलेज में पढ़ रही हैं..उन्हें किसी बात की कमी न पड़े इसलिए राजू वैष्णव ने एक स्कार्पियो, एक माइक्रो निशान कार, दो स्कूटर और बाईक ली है..दिलचस्प बात यह है कि 50 लाख रुपए खर्च कर राजूभाई ने अपनी मानस संतानों को लंदन में सेटल किया है पर राजूभाई ने कभी भी अपना धंधा विदेश में करने के बारे में नहीं सोचा.
वडोदरा के इस ‘कुंवारे बाप’ राजू वैष्णव के ग्राहक, ढाबे पर कच्च सामान सप्लाय करने वाले व्यापारियों, पुलिस के अनेक कर्मचारी जानते हैं कि राजू ने अपनी मानस संतानों को विदेश में सेटल कराने के लिए कितनी मेहनत की है और आज भी वह उन्हें पढ़ा रहा है. इन बच्चों के पहले के जीवन में और अब के जीवन में बहुत फर्क है. इसके बावजूद राजू का मानना है कि वह तो निमित्त मात्र है, बाकी तो इन बच्चों की योग्यता और उनका नसीब है.
राजृ वैष्णव मूल रुप से राजस्थान के बूंदी जिले के लांबाकोर के रहने वाले हैं. तुलसीदास वैष्णव की तीन संताने में सबसे छोटे राजू ने 1987 में अपना घर छोड़ दिया था. राजस्थान में बाप-दादा की मार्बल की खदानों में रुचि नहीं होने के कारण राजू घूमते-घूमते वडोदरा आ गया और रेसकोर्स रोड पर मानसिंहभाई के सेंव-ऊसल के ठेले पर काम सीखा। थोड़े दिनों बाद शाम को उसने पंजाबी ढ़ाबा शुरु किया, जो चल निकला.
एक दिन उसके ढ़ाबे पर एक महिला अगरबत्ती बेचने आती है। शिक्षित और संस्कारित महिला को अगरबत्ती देख राजूभाई ने कहा कि मैं तुम्हें अपनी बेटी मानकर तुम्हारी मदद करना चाहता हूं पर केवल एक साल के लिए. तब तक तुम्हें अस काबिल बनना होगा कि किसी दूसरे की मदद न लेना पड़े. इस महिला को ब्यूटी पार्लर का कोर्स पसंद था. उसने अपनी यह इच्छा राजूभाई को बताते हुए कहा कि एक बार लंदन जाने का मौका मिल जाए तो वह वहां नौकरी करना चाहती है. राजू अपनी नकद-उधार रकम के अलावा अपने ग्राहकों और परिचितों से कुल 15 लाख रुपए की राशि इकट्ठा कर उसके बेंक बेलेंस में जमा करवा देते हैं और टूरिस्ट वीजा बनवाकर उसे लंदन भिजवा देते हैं.
इस महिला को लंदन जाने के बाद लीस्टर सिटी के एक सेलून में नौकरी मिल जाती है. इसके बाद वह अनाथ भाई-बहनों को लंदन भिजवाते हैं. ये दोनों फिलहाल लंदन के रेस्त्रं में नौकरी कर रहे हैं. राजू के ढाबे पर उसे कानूनी मार्गदर्शन देने वाले ग्राहक की मौत के बाद उसकी दो बेटियों को भी उचित वर ढूंढकर उनकी शादी कराने के बाद विदेश भिजवाते हैं. वे दोनों वहीं सेटल हो गई हैं और उनकी संताने राजू को दादाजी कहती हैं. 42 वर्ष के ‘कुंवारे बाप’ राजू यूं तो अकेले हैं पर उनका कहना है कि ‘मैं बिल्कुल अकेला नहीं.मुझ पर बहुत लोगों की जिम्मेदारी है’
Ye umra ye udarta aur jazba.
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