पुणे के येरवड़ा जेल में गत दिनों हुई कुख्यात आतंकवादी मोहम्मद कतिल मोहम्मद जफर सिद्दीकी की हत्या, एक नहीं तमाम सवाल खड़े कर गई है। कतिल सिद्दीकी की हत्या के मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग सिद्दीकी के परिजनों और मुस्लिम संगठनों ने की है परंतु इस मामले में एक नया मोड़ आ जाने से मामला और जटिल हो गया है।
26 वर्षीय कतिल सिद्दीकी ने भारत में दहशतवादी गतिविधियों को अंजाम देने के मकसद से इंडियन मुजाहिद्दीन के यासीन भटकल के इशारे पर 13 फरवरी 2010 को पुणो के दगडू सेठ गणपति मंदिर पर हमला करने की साजिश रची थी। इसके अलावा पुणो की ही जर्मन बेकरी में बम रखकर 17 लोगों की जान ली थी। इस घटना में 50 लोग घायल हुए थे। येरवड़ा जेल में अमोल भालेराव और शरद मोहोल नामक दो कैदियों ने इलेस्टिक की डोरी से उसका गला दबाकर हत्या किए जाने की बात सामने आई है। वैसे तो कतिल सिद्दीकी को येरवड़ा जेल के अंडा सेल में रखा गया था और केवल सुबह दो घंटे के लिए उसे खुले में जाने दिया था। उसी वक्त उसकी हत्या होने का कहा जाता है। मोहोल और भालेराव ‘मोका’ यानी संगठित अपराध के मामलों में पिछली फरवरी से सजा काट रहे हैं।
कतिल सिद्दीकी की हत्या के फौरन बाद महाराष्ट्र सरकार ने जेल के अधीक्षक एस.वी. खटावकर को निलंबित कर दिया और मामले की सीआईडी जांच के आदेश दे दिए। कतिल सिद्दीकी 17 अप्रैल 2010 को आईपीएल मैच के पहले बेंगलुरू के चिन्ना स्वामी स्टेडियम में हुए बम धमाके और पिछली 19 सितंबर को हुए जामा मस्जिद पर हुई फायरिंग के मामले में भी आरोपी था। उसे महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधी दस्ते ने दिल्ली पुलिस के कब्जे से लेकर 31 मई को येरवड़ा जेल भेजा था। हत्या के दिन आतंकवाद निरोधी दस्ते ने मजिस्ट्रेट को बताया था कि दगड़ू सेठ गणपति मामले में जांच पूरी हो गई है, इसलिए कतिल को जामा मस्जिद केस में दिल्ली पुलिस के हवाले किया जाना है।
कहा जाता है कि बिहार के समस्तीपुर का मूल निवासी कतिल सिद्दीकी उसकी हत्या के आरोपियों से जेल में अच्छी तरह घुल मिल गया था और मोहोल के साथ वह शतरंज भी खेलता था। इसके बाद ऐसा क्या हुआ कि मामला हत्या तक पहुंच गया और जिस दिन उसे दिल्ली पुलिस के हवाले किया जाना था, तब उसे मौत के घाट उतार दिया गया। आखिर, कतिल की हत्या की कोई ठोस वजह तो होगी ही! कहा जाता है कि 2003 में मुंबई में हुए श्रृंखलाबद्ध बम धमाकों के बाद दाऊद इब्राहीम की गेंग से अलग हुए छोटा राजन के गुर्गो ने उसे मौत के घाट उतारा है, क्योंकि छोटा राजन खुद को देशप्रेमी डॉन मानता है। दाऊद के आतंकवादी गतिविधियों से जुड़ने के बाद छोटा राजन ने खुद को डी गेंग से अलग कर लिया और पुलिस की ‘कृपा’ बनी रहे, इसलिए वह आतंवादी गतिविधियों से जुड़े लोगों के पीछे पड़ जाता है। उसकी गेंग से अलग हुए गुर्गे- भरत नेपाली, विजय शेट्टी, संतोष शेट्टी और रवि पुजारी भी डी गेंग को निशाना बनाते हैं। उधर, दाऊद ने पाकिस्तान के कराची में शरण ली है और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी से हाथ मिलाकर भारत में आतंकी वारदातों को अंजाम दिया है। कतिल सिद्दीकी मामले की जांच कर रहे अधिकारियों का मानना है कि उसने दगड़ू सेठ गणपति मंदिर को उड़ाने की साजिश रची थी और वह देशद्रोही गतिविधियों में संलिप्त था, इसलिए उसकी हत्या की गई है।
यहां यह उल्लेख जरूरी है कि बॉलीवुड की फिल्मों के प्रभाव में आकर ये तमाम बदमाश खुद को रॉबिन हुड मानने लगे हैं। एक बार अंधेरी दुनिया में दाखिल होने के बाद उनके लिए वापस लौटना मुमकिन नहीं होता, फिर पुलिस की मदद के बिना वे कुछ भी नहीं कर सकते। ऐसे में उनके आतंकवादियों के पीछे पड़ जाने से पुलिस की खाल भी बच जाती है। स्थानीय गुंडों के अपराधों के मुकाबले आतंकवादी हमलों से पुलिस पर अधिक दबाव होता है, इसलिए कई मौकों पर पुलिस छोटा राजन की मददगार बन जाती है। बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद मुंबई में दंगों के दौरान पुलिस ने कई मुस्लिम इलाकों में हिंसक घटनाओं के दौरान आंखें बंद कर ली थीं। कुख्यात सुलेमान बेकरी हत्याकांड मामले में अंधाधुंध गोलीबार किए जाने पर पूर्व पुलिस कमिश्नर आर.डी. त्यागी और आठ अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ केस दर्ज हुआ था, यह हम सभी जानते हैं। वे निदरेष छूट गए, यह और बात है। पुलिस को हमेशा स्थानीय गुंडों से कोई खास दिक्कत नहीं होती, वे उनके हित साधते रहते हैं और काम निपट जाते ही पुलिस उन्हें दूध में मक्खी की माफिक निकाल फेंकती है।
मुंबई में 11 जुलाई को हुए ट्रेन में ब्लाट के आरोपी एहतेशाम सिद्दीकी पर हमला करने के पहले विजय शेट्टी गेंग के हमलावरों को मुंबई क्राईम ब्रांच ने धरदबोचा था। कथित रूप से आतंकवादियों के केस लड़ने वाले शाहिद आजमी के हत्यारों को भगा देने की साजिश भी इन तीनों बदमाशों ने रची थी। शाहिद आजमी के हत्यारों को भरत नेपाली के गुंडों ने ढेर कर दिया था।
येरवड़ा जेल में कतिल सिद्दीकी की हत्या छोटा राजन के लोगों द्वारा किए जाने की शंका यह दर्शाती है कि अब यह गेंगवार दो बदमाशों के बीच न होकर दो विचारधाराओं के बीच हो गई है। हो सकता है कि राष्ट्र विरोधी और ‘देशप्रेमी’ टोलियां आगे चलकर देश के लिए गंभीर मुसीबतें खड़ी करें। जैसा कि पहले कहा है कि अंडर वर्ल्ड की दुनिया से एक बार जुड़ने के बाद कोई भी वापस नहीं लौट सकता। आतंकवादी और आतंकवाद विरोधी जत्थों के बीच छिड़ी जंग भविष्य में अपराध-जगत को और भयानक बनाएगी, इसमें कोई दोमत नहीं। छोटा राजन अच्छा गुडा और बाकी के सब खराब, क्या कभी ऐसा हो सकता है? बेशक, आतंकवाद एक अलग समस्या है और उस पर काबू पाने के लिए सरकार भी चिंतित है और कारगर कदम उठा रही है, किंतु उसके लिए दूसरे अपराधियों को पोसना, कतई जायज नहीं कहा जा सकता। कतिल सिद्दीकी की हत्या के दोनों आरोपी-मोहोल और भालेराव पर ‘मोका’ कानून लगाया गया था, इसका मतलब यह हुआ कि दोनों ने संगठित तौर पर गंभीर कृत्य किए हैं। यह तो ठीक वैसे ही हुआ, जैसे हम चुनावों में भ्रष्ट उम्मीदवार की बजाय कम भ्रष्ट उम्मीदवार को पसंद करते हैं। एक बात साफ है कि जनता ऐसे ही लोग खपते हैं, जो जरा भी भ्रष्ट न हों, जरा भी खराब न हों। असल में, इस मामले में कम और अधिक का कोई अर्थ ही नहीं है। कम को अधिक होने में आखिर, देर कितनी लगती है।
जेल के अंडा सेल में घटित यह घटना वाकई चौंकाने वाली है और जेल की सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोल देने वाली है। यह सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती देने वाली है। जेल में क्षमता से अधिक कैदी, लचर सुरक्षा व्यवस्था और अपर्याप्त जेलकर्मी और जेल में सुधार के प्रस्ताव पर सरकार की अनदेखी भी इस घटना के मूल में है। अंडा सेल में क्लोज सर्किट टीवी केमरे लगाए जाने की योजना को क्यों टाला जा रहा है? हैदराबाद की अति सुरक्षित चेल्र्लापल्ली जेल में रखे गए कुछ अपराधियों ने कुछ महीने पूर्व सूक्ष्म नजर रखने वाले जेलकर्मी पर हमला कर दिया था। एक आतंकवादी संगठन से जुड़े होने के आरोप में जेल में बंद एक कैदी ने ठेठ सऊदी अरब फोन करने की बात भी तब उजागर हुई थी। और एक कैदी उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र के अपराधी गिरोहों के संपर्क में था। महाराष्ट की ही नाशिक रोड और आर्थर रोड जेलों में भी कुछ खास टोलियों द्वारा अपने गोरख-धंधे सुविधापूर्वक चलाए जाने का उजागर हुआ था। जेलों में अपराधियों के पास माबाईल फोन और दूसरी सामग्री मिलना आम बात है। अनेक गंभीर अपराधों की साजिश भी जेल में रचे जाने का उजागर हो चुका है। इसके बावजूद न तो जेलों की व्यवस्था में कोई सुधार होता है, न कोई कारगर कदम उठाए जाते हैं।
पुलिस अपनी चमड़ी बचाने के लिए ऐसे ‘देशप्रेमी’ गुंडे-बदमाशों को पोसेगी तो एक दिन यह बीमारी कितनी बढ़ जाएगी, यह भगवान ही जाने। अभी तो तमाम मोर्चो पर नाकाम और भ्रष्टाचार से खदबदाता पुलिस तंत्र इस प्रवृत्ति से देश को और अधिक जोखिम में डाल रहा है। पुलिस के लिए डर जैसी कोई बात अब रह ही नहीं गई है। समूचा देश इस बात को अनुभूत कर रहा है और ऐसे में गेंगवार को मिला यह नया स्वरुप देश के लिए और अधिक घातक होगा। सवाल उठना लाजिमी है कि पुलिस को तो अपराधियों को समान नजरिए से देखना चाहिए, फिर वह क्यों ऐसा कर रही है?
sir ji aapekey post mey maja aa raha hey
जवाब देंहटाएंapke is blog ne prashashan ki pol khol di aur sath hi sath desh-bhakti ke nam par rashtradroh logo ki jabardast khichyi v hui......
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