प्रसिद्ध समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया और मकबूल फिदा हुसैन दोनों बहुत अच्छे मित्र थे। या यूं कहें कि हुसैन के हुसैन बनने के पीछे कोई था तो वह डॉ. लोहिया थे। डॉ. लोहिया ने हुसैन से एक बार कहा था, ‘केवल धनाढय़ों, रईसों की सेवा क्यों करते हो, आम लोगों को मत भूलो।’ हुसैन ने लोहिया की इस बात को गंभीरता से लिया। एक कार पर उन्होंने पौराणिक कथा पर आधारित चित्र उकेरे और वह गाड़ी गांव-गांव में घुमाई। गांव-गांव में लोग आते, चित्र देखते और आनंदित होकर लौट जाते। चित्रकला को आम लोगों से मिली प्रशंसा देख हुसैन अभिभूत हो गए।
उन्होंने ये सारे अनुभव डॉ. लोहिया को सुनाए। डॉ. लोहिया ने इसके बाद उन्हें संक्षेप में रामायण और महाभारत के बारे में बताया और उनका इस्तेमाल चित्रकला में करने की समझाईश दी। हुसैन ने इसके बाद काशी के एक गुरू से संस्कृत भाषा सीखी और फिर ‘वाल्मिकी रामायण’ और तुलसीदासजी के ‘रामचरित मानस’-इन दोनों ग्रंथों को पढ़ लिया। लगे हाथ ‘महाभारत’ भी पढ़ ली। बाद में उन्होंने ‘रामायण’ पर आधारित डेढ़ सौ पेंटिंग्स बनाई।
ये पेंटिंग्स उन्होंने जब डॉ. लोहिया को दिखाई, तो वे बहुत खुश हुए और वे हुसैन पर फिदा हो गए। रामायण के ये चित्र आज भी हैदराबाद में कहीं पड़े हुए हैं। चित्रकला में मिली कामयाबी, विवादों, घुमक्कड़ प्रवृत्ति और फक्खड़ स्वभाव के कारण एमएफ हुसैन हमेशा ही सुर्खियों में रहे। ‘धक-धक गर्ल’ यानि माधुरी दीक्षित की खुली तारीफ और उसके बाद उस पर बनाई गई फिल्म भी उनका बड़प्पन दिखाती है। रास्ते में पड़ने वाले पान-ठेले पर रूककर पान लेने पर भी उनकी चर्चा होती थी।
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