मुंबई में पिछले महीने संपन्न भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में नरेंद्र मोदी को हरी झंडी मिल जाने के फौरन बाद मोदी दिल्ली में सक्रिय हो गए और उन्होंने दिल्ली जाकर पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के हाल-चाल जाने और वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी से भी मुलाकात की। नरेंद्र मोदी, भारतीय राजनीति का एक ऐसा नाम है, जिसके समर्थक हैं तो विरोधी भी कम नहीं, इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि मोदी किसे पसंद है और किसे नहीं।
शिवसेना, भाजपा का लंबे समय से सहयोगी दल है। भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन की शुरूआत ही शिवसेना के साथ की है परंतु हाल ही में मोदी ने शिवसेना के प्रतिद्वंद्वी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के राज ठाकरे के साथ दोस्ती गांठी है, इसलिए शिवसेना सुप्रीमो का समर्थन शायद मोदी को नहीं मिल पाएगा। महाराष्ट्र की राजनीति में भी शिवसेना-भाजपा संबंध पहले जैसे प्रगाढ़ नहीं रह गए हैं। पंजाब में अकाली दल का समर्थन मोदी को मिलने में कोई खास अड़चन नहीं आने वाली, क्योंकि दोनों ही कांग्रेस के घोर विरोधी हैं।
बिहार में जरूर मोदी को दिक्कत आने की संभावना है, क्योंकि बिहार के मुख्यमंत्री नितीशकुमार और मोदी के बीच संबंध ठीक नहीं हैं। मोदी के आक्रामक हिंदूवादी चेहरे के कारण नितीशकुमार का सहयोग शायद ही मोदी को मिल पाए। बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान नितीशकुमार ने मोदी को प्रचार पर आने से रोक दिया था। भाजपा को दिल्ली फतह करना है तो केवल शिवसेना, संयुक्त जनता दल और अकाली दल की मदद से ही बात नहीं बनेगी, बल्कि गठबंधन का विस्तार करना पड़ेगा। कुछ नए क्षेत्रीय दलों को जोड़ना होगा।
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता मोदी की कट्टर समर्थक हैं और इस कारण जयललिता की पार्टी अखिल भारतीय द्रविड़ मुनेत्र कषघम मोदी की मदद कर सकता है परंतु उड़ीसा में बीजू जनता दल के नवीन पटनायक मोदी का समर्थन करेंगे, इसमें संदेह है। आंध्र प्रदेश में तेलगू देशम को लेकर भी शंका है। इस कारण मोदी के लिए जरूरी है कि वे थोड़े उदार हों, परंतु मोदी का यकीन झुकने में नहीं अड़ने में है। जो व्यक्ति पार्टी के एक छोटे पदाधिकारी को निकालने के लिए इस्तीफा देने तक की धमकी देता हो, जो व्यक्ति मुस्लिम मौलवी की टोपी पहनने से इनकार करता हो, वह शख्स उदार हो सकता है क्या? भविष्य बताएगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें