शुक्रवार, 1 जून 2012

मार्केटिंग: नॉट ए लक्जरी, बट ए नेसेसिटी

मार्केटिंग यानि भोगविलास नहीं, परंतु प्रॉडक्ट के लिए आवश्यक जरूरत। ‘नॉट ए लक्जरी, बट ए नेसेसिटी।’ बाजार में जबरदस्त प्रतिस्पर्धा है। तुम्हारे जैसे प्रॉडक्ट तुम्हारे प्रतिस्पर्धी भी बनाते हैं। तुम्हें तुम्हारा प्रॉडक्ट या सेवा अपने प्रतिस्पर्धियों से आगे ले जाना है तो उसके लिए मार्केटिंग करना ही पड़ेगी। आप जब बिजनेस जगत में दाखिल होते हो तो ध्यान रखो कि खेल के मैदान में फुटबॉल की माफिक तुम्हारी स्थिति न बनें। तुम्हें कोई कोने में न धकेल दे, इसका खयाल तुम्हें ही रखना है।
‘केलोग्ज’ कंपनी का उदाहरण समझने लायक है। भारत ने 1991 में आर्थिक उदारीकरण की नीति अपनाई और उसके साथ ही विदेशी कंपनियों के लिए दरवाजे खोल दिए। तब कार्नफ्लेक्स के साथ ही कई कंपनियां धमाके के साथ भारत आईं, जबकि भारत की बड़े हिस्से की आबादी पोहा, इडली-सांभर, वड़ा-पाव, खाखरा, खमण-ढोकला, कचौरी-समोसे की शौकीन होने के कारण उसे कामयाबी नहीं मिली थी, इसलिए उसने भारत से वापस लौटने का लगभग फैसला कर लिया था। इसके बाद कंपनी 1999 में कार्नफ्लेक्स कंपनी ने फिर से भारत के विशाल मध्यम वर्ग को ध्यान में रखकर भारत के बाजार में पुनर्प्रवेश का फैसला किया। 

यह वो वक्त था, जब भारतीय सामाजिक जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन हो रहे थे। युवाओं को अच्छी सेलेरी मिलने लगी थी, पति-पत्नी  दोनों कमाने लगे थे। दोनों वर्किग होने से कार्नफ्लेक्स जैसे रेडीमेड ब्रेक-फास्ट के लिए तैयार थे। संयुक्त परिवार विघटित हो रहे थे, इस कारण पोहा और इडली बनाने वालों की संख्या घट रही थी। इन हालातों में ‘केलोग्ज’ कंपनी ‘सात्विक नाश्ता’ के रुप में भारत के बाजारों में धमाकेदार पुनर्प्रवेश किया और आज नतीजा सामने है कि घर-घर में कार्नफ्लेक्स खाया जाने लगा है। व्यावसायिक क्षेत्र में तुम अपनी पहचान बनाना चाहते हो तो अपने प्रॉडक्ट के लिए पूरे आत्म-विश्वास के साथ आगे बढें पर किसी वस्तु का ‘बाजार गर्म’ हो, इसलिए उस धंधे में दाखिल न हों। यदि तुम्हारा प्रॉडक्ट अच्छा नहीं है तो गरम बाजार में भी नहीं चलेगा। 

यदि तुम कपड़े बेचते हो तो अपने खुद के ब्रांड ही पहनो? तुम्हारे कर्मचारी ये ब्रांड पहनकर सेल्स मार्केटिंग के लिए जाते हैं? पहला काम यह करिए कि तुम गर्व के साथ पहन सको, ऐसे कपड़े बनाओ, फिर बाद में उन्हें बेचने निकलो। ‘टाटा’ की लगभग सभी कंपनियों पर की गई चर्चा श्रेष्ठ उदाहरण है। ‘टाटा’ कंपनी अर्थात् विश्वास। ‘टी.सी.एस.’ यानि टाटा कंसलटेंसी सर्विस ने खास मार्केटिंग किया ही नहीं, बावजूद इसके अब तक वह भारत की सबसे बड़ी और विश्वास-पात्र आई.टी. कंपनियों में उसकी गणना होती है।

एक कंपनी के रुप में टाटा स्टील, टाटा केमिकल, टाटा मोटर्स या टाटा रियाल्टी ने इतनी उत्तम कार्पोरेट प्रेक्टिस अपनाई है जिसका उदाहरण दिया जा सकता है। कंपनी का एक-एक कर्मचारी अपनी कंपनी में असीम विश्वास रखता है। टाटा ग्रुप के चेयरमेन रतन टाटा अपनी ही एक कंपनी ‘टाटा मोटर्स’ द्वारा निर्मित ‘टाटा इंडिगो मरीन वेगन’ मोटर में ही सफर करते हैं। हालांकि, वे चाहें तो दुनिया की किसी भी वैभवशाली कार को खरीदने में सक्षम हैं!

मेरा खयाल है कि धंधे में तुम क्या करते हो, इसके बजाय उसे किस प्रकार करना चाहिए, यह महत्वपूर्ण है। तुम्हारे प्रॉडक्ट की इमेज तुम ही बना सकते हो। तुम्हारे द्वारा दिया गया नाम, संज्ञा या लोगो या स्लोगन ही प्रॉडक्ट की ब्रांड-इमेज खड़ी करते हैं। सर्विस और क्वालिटी इन निर्जीव वस्तुओं में जान फूंकते हैं।

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