छोटे लोगों की बड़ी गलती जितना नुकसान नहीं करती, उसके मुकाबले कई गुणा अधिक नुकसान बड़े लोगों की छोटी गलती से होता है। जितनी बड़ी जिम्मेदारी होगी, जोखिम भी उतना बड़ा होगा। उद्योग-धंधे की बात हो तो आदमी को कदम-कदम पर तीव्रता से फैसले करना पड़ते हैं। फैसला लेने में छोटी-सी गलती भी कंपनी को खड्ढे में डालने के लिए काफी है। इतना ही नहीं तो कई बार निर्णय न लेने या विलंब से लेने की गलती भी भारी पड़ जाती है।
‘व्हाय स्मार्ट एक्जीक्यूटिव फेल’ पुस्तक के लेखक और अमेरिका के टक स्कूल ऑफ बिजनेस में मेनेजमेंट पढ़ाने वाले प्रोफेसर सिडनी फिनकेलस्टेन ने हाल ही में ‘वस्र्ट सीईओ ऑफ 2011’ की सूची जारी कर विश्व के कार्पोरेट वर्ल्ड में खलबली मचा दी है। प्रो. फिनकेलस्टेन कहते हैं,‘पूरी कंपनी का बोझ सीईओ यानी चीफ एक्जीक्यूटिव के कंधों पर होता है।’
कंपनी का भट्ठा बैठाने के लिए टॉप लेवल के एक अधिकारी की एक गलती ही काफी होती है। उद्योगों की दुनिया गवाह है कि एक गलत फैसला बरसों-दशकों की मेहनत पर पानी फेर देता है। यह गलती ऐसी होती है, जिसे बाद में सुधारा नहीं जा सकता। गलती पता चलती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
प्रो. सिडनी फिनकेलस्टेन सबसे पहला उदाहरण देते हैं ब्लेकबेरी का। केनेडा की रीम यानी रिसर्च इन मोशन कंपनी ब्लेकबेरी स्मार्ट फोन की डिजाईन, उत्पादन और मार्केटिंग के लिए पूरी दुनिया में विख्यात है। रीम को दो सीईओ चलाते थे-माईक लाझारिडीस और जिम बाल्सीलीई। इन दोनों सीईओ के नाम वस्र्ट सीईओ की सूची में शामिल है। ब्लेकबेरी की शुरूआत 1998 में हुई थी। स्मार्ट फोन द्वारा ईमेल और मेसेजिंग सेवा में ब्लेकबेरी ने क्रांति कर दी थी। 2008 में स्मार्ट फोन के मार्केट में ब्लेकबेरी का मार्केट 83 फीसदी था। 2011 में यह मार्केट शेयर घटकर मात्र 11 प्रतिशत रह गया। कंपनी के इस डाउनफाल के लिए यदि कोई जिम्मेदार था तो ये दोनों सीईओ- माईक और जिम।
इन दोनों सीईओ से कहां और क्या चूक हो गई? एक तो उन्होंने स्मार्ट फोन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाली एन्ड्राइड टेक्नॉलाजी नहीं अपनाई। हम तो टॉप पर ही रहेंगे और हमें कोई हिला नहीं सकता, ऐसे भ्रम और अभिमान में नए फैसले नहीं लिए। प्रतिस्पर्धी कंपनी एपल ने आईफोन के धड़ाधड़ दो वजर्न जारी कर दिए। आई पेड लांच कर दिया। देर से जागी ब्लेकबेरी ने प्लेबुक लांच की, मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। एपल और गूगल ने अपनी सुधिाओं में धड़ाधड़ परिवर्तन और विकास किया और ब्लेकबेरी औंधे मुंह गिर गई। ब्लेकबेरी ने अपनी मेसेजिंग और ई-मेल सेवा सस्ती नहीं की, इसलिए भी पतनशील कंपनी गर्त में चली गई। सवाल उठता है कि रीम कंपनी के ये दोनों सीईओ उचित समय पर फैसला क्यों नहीं ले सके? प्रो. सिडनी फिनकेलस्टेन इसके लिए को-सीईओ सिस्टम अर्थात एक से अधिक सीईओ पद्धति को जिम्मेदार मानते हैं। वे कहते हैं कि किसी भी कंपनी में ‘डिसीजन मेकर’ एक ही होना चाहिए। एक से अधिक लीडर होने पर नाकामयाबी निश्चित हो जाती है। प्रो. सिडनी उन्हें ‘ग्यारंटीड मॉडल ऑफ फेल्योर’ के खिताब से नवाजते हैं। एक से अधिक लीडर हों तो कई बार फैसले वापस लेना पड़ते हैं और अनेक बार कौन मुख्य व्यक्ति है, यह तय करना मुश्किल हो जाता है।
दूसरा उदाहरण है दुनिया में सबसे ज्यादा पर्सनल कम्प्यूटर बनाने वाली एचपी यानि ह्युलेट पेकार्ड कंपनी का। एचपी के सीईओ लियो एपोथेकर ने पर्सनल कम्प्यूटर के साथ टेबलेट बनाने का फैसला लेने में थोड़ी देर क्या कर दी, कंपनी का मार्केट केपिटलाईजेशन मात्र 11 महीनों में तीस अरब डॉलर घट गया। टेबलेट बनाने का तय करने के बाद सीईओ ने अपना फैसला बदल दिया और उस पर अमल स्थगित रखा। कंपनी के सीईओ के कारण एचपी की कमर टूट गई और कंपनी को भारी घाटा उठाना पड़ा।
अब बात करते हैं नेटफ्लीक्स कंपनी के सीईओ रिड हास्टींग्स की। यह कंपनी अमेरिकन है और इसने ई-मेल द्वारा डीवीडी किराए पर देने के मामले में नाम कमाया था। कंपनी ने बाद में अपनी सेवा का विस्तार करने का तय किया और इंटरनेट वीडीयो स्ट्रीमिंग सेवा शुरू की। 2012 तक इस नई सेवा को अमेरिका के बाहर यूरोप के देशों में शुरू करने का तय किया। परिवर्तन के इस युग में इंटरनेट द्वारा नई सेवा शुरू करने का सीईओ का यह निर्णय उचित था, किंतु कुछ मामलों में वे मात खा गए। एक तो उन्होंने नई सेवा के लिए दूसरी कंपनी शुरू कर दी। सेवा की दरें बढ़ा दीं और कम्युनिकेशन सिस्टम को इतना जटिल बना दिया कि लोगों को जो चाहिए था, वह मिल न सका। नतीजा यह हुआ कि कंपनी को दोनों सेवाओं में मार खाना पड़ी।
प्रो. फिनकेलस्टेन कहते हैं कि वर्ष 2011 में अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियों को बाजार से अपने प्रॉडक्ट वापस लेना पड़े थे, इसकी वजह ज्यादातर कंपनियों के टॉप के अधिकारियों की गलतियां थीं। अनेक कंपनियों ने अपने मेडिकल और कन्ज्युमर आइटम्स जैसे कि इंस्युलिन पम्पस, सीरिंज, स्युटुरेस, बेबी शेम्पू, कॉन्टेक्ट लेंस आदि बाजार में से वापस ले लिए थे।
सीईओ को कंपनी से निकाले जाने की अनेक घटनाएं हो चुकी हैं। अनेक सीईओ फिनिक्स पक्षी की माफिक वापस स्थापित हो गए तो अनेक गुम हो गए। मल्टी नेशनल कंपनियों में एक निर्णय कई बार कंपनी को तार देता है तो एक छोटी-सी चूक कंपनी का भट्ठा बिठा देती है। 1994 में याहू की स्थापना करने वाले जेरी यांग को उनकी कंपनी से ही हटा दिया गया था। याहू की सफलता में जेरी यश के भागीदार थे। सफल होना एक बात है और सफलता को टिकाए रखना दूसरी बात। जानकारों का कहना है कि सफल होना आसान है, मगर सफलता को टिकाए रखना बेहद मुश्किल। आप जैसे-जैसे सफलता के शीर्ष के नजदीक पहुंचते हैं, वैसे-वैसे खतरा बढ़ता जाता है। जेरी यांग ने उन्हें हकाले जाने के बाद कहा था कि अब वे याहू के बाहर अपनी पसंदीदा और रूचि की दुनिया ढूंढेंगे।
याहू ने अपनी वेबसाइट के मार्फत चलने वाले गूगल पावर सर्च इंजिन को बंद किया और वेबसाइट की लोकप्रियता घट गई। यही कंपनी याहू ने 2002 में तीन अरब डॉलर में खरीदने का ऑफर दिया था, जिसे गूगल ने ठुकरा दिया था। गूगल को बाद में जबरदस्त लोकप्रियता मिली और तमाम प्रतिद्वंद्वियों का बोलती बंद कर दी।
स्टीव जॉब को भी एपल कंपनी में से निकाल दिया गया था। वजह यह थी कि सारे निर्णय वे खुद लेते थे और तानाशाह की तरह बर्ताव करते थे। छोटी उम्र में जबरदस्त सफलता पाने वाले स्टीव के लिए सह एक सेटबेक था, जबकि स्टीव हिम्मत हारने वालों में नहीं थे।
एपल से निकलने के बाद स्टीव ने कम्प्यूटर कंपनी नेक्स्ट और एनिमेशन कंपनी पिक्सर की रचना की। वे अपने अंदाज में काम करते जा रहे थे, जबकि नया टर्न आना तो अभी बाकी था। हुआ यूं कि नेक्स्ट कम्प्यूटर कंपनी का सौदा एपल के साथ हो गया और इस प्रकार स्टीव जोब वापस एपल में आ गए। इसके बाद 2001 में स्टीव जोब ने आई पॉड और आईटय़ून बाजार में पेश कर हलचल मचा दी। प्रतिस्पर्धियों को कुछ समझ में आए इसके पहले उन्होंने आईफोन और आईपेड बाजार में पेश कर दिए। पूरी दुनिया एपल के उपकरण लेने के लिए पागल थी। प्रतिस्पर्धी टेबलेट बनाए उसके पहले उन्होंने नए वजर्न बाजार में डाल दिए। स्टीव की तबीयत ने उनका साथ नहीं दिया पर दुनिया से जाने के पहले वे अपना नाम अमर कर गए।
सबसे पुरानी और दुनिया की सबसे बड़ी कार कंपनी जनरल मोटर्स के संस्थापकों में शुमार विलियम्स डय़ूरंट को भी दो बार कंपनी से निकाल दिया गया था। कार्पोरेट जगत के विशेषज्ञों का कहना है कि कार्पोरेट वर्ल्ड में सफलता और असफलता दोनों भावी एक्जीक्यूटिव्स के लिए सबक बन जाती है। वस्र्ट सीईओ की सूची बनाने वाले प्रो. सिडनी भी कहते हैं कि इन सबने ऐसी गलतियां कीं, जो किसी भी सीईओ को नहीं करना चाहिए। सफलता के कारणों से कहीं ज्यादा असफलता के उदाहरणों से सीखना जरूरी है।
अंत में, कार्पोरेट वर्ल्ड की एक लघुकथा। एक सीईओ ने अपने सभी मेनेजरों की मीटिंग बुलाई। मेनेजरों से कहा कि आज मुङो तुम सबसे थोड़ा अलग काम है। मुङो आप सबसे यह जानना है कि अपनी सफल कंपनी को किस प्रकार खड्ढे में धकेला जाए और उसका पतन करना हो तो क्या करना चाहिए। उसने सभी मेनेजरों को एक-एक कागज दिया और कहा कि आप सभी इस पेपर पर अपने विचार लिख दें कि क्या किया जाए जिससे दीवाला निकल जाए?
सभी मेनेजरों ने कागज पर अपने-अपने विचार लिख दिए कि ऐसा करने से कंपनी का पतन हो जाएगा। सीईओ ने सारे पेपर इकट्ठा किए और फेहरिश्त बनाई। उसके नीचे लिखा कि आप लोगों ने बहुत सही कारण सुझाए हैं। अब मैं नीचे एक लाइन लिखता हूं उसे ध्यान से पढ़ना और उस पर ठीक से अमल करना। उसने नीचे लिखा-‘बस, आपको यही नहीं करना है!’
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