हाल में भारतीय संसद ने साठ साल पूरे कर लिए। साठ की उम्र परिपक्वता की मानी जाती है। पिछले छह दशकों में संसद की छबि में अनेक परिवर्तन आए हैं। संसद में आज हंगामा, शोर-शराबा, नोटों की गड्डियां उछालने, माईक फेंकने आदि कारणों से लोकसभा-राज्यसभा बार-बार स्थगित की जाती है। वर्तमान में वैचारिक, बौद्धिक भाषण कम और आरोप-प्रत्यारोप अधिक होते हैं।
पहले यह माना जाता था कि संसद का काम कानून बनाना है। इस कारण संसद का 50 फीसदी समय कानून बनाने में खर्च होता था। आज ऐसा नहीं है। पिछली तीन लोकसभाओं में मात्र 12 से 15 प्रतिशत समय कानून बनाने में खर्च हुआ। अनेक मर्तबा महत्व के और गंभीर विषयों पर चर्चा के वक्त सांसद गैर हाजिर होते हैं। वे सदन में कम, केंटीन या सेंट्रल हॉल में ज्यादा होते हैं। इस परिवर्तन के पीछे पृष्ठभूमि भी एक वजह है। पहले संसद में बड़ी संख्या में आभिजात्य वर्ग यानि एलिट क्लॉस से आते थे। ज्यादातर देश के बड़े नगरों या उपनगर से आते थे। उनमें से कई देश-विदेश की श्रेष्ठ अंग्रेजी माध्यम की शैक्षणिक संस्थाओं से आते थे। उनमें से अनेक वकील थे या फिर काबिल होते थे। अब जाति और संप्रदाय के आधार पर टिकट दिए जाने से अनेक सांसद न तो अंग्रेजी ठीक से बोल पाते हैं और न ही हिंदी। देश का आम आदमी भी संसद में बैठे, यह अच्छी बात है परंतु संसद में होने वाली गंभीर चर्चा में क्या वह भाग ले सकता है, यह एक सवाल है?
प्रथम लोकसभा
यह भी जानने लायक बात है कि पहली लोकसभा कैसी थी? देश की पहली लोकसभा का गठन 17 अप्रैल 1952 को हुआ था। लोकसभा की पहली बैठक 13 मई 1952 को आहूत हुई। तब लोकसभा में कुल 499 सांसद थे। इनमें 35.6 प्रतिशत वकील, 22.4 प्रतिशत किसान या जमींदार, 12 प्रतिशत उद्योगपति और व्यवसायी, 10.4 प्रतिशत पत्रकार और लेखक, 7.7 प्रतिशत शिक्षक और शिक्षाविद्, 4.9 प्रतिशत डॉक्टर और 1.1 प्रतिशत पूर्व राजा थे। उनकी शैक्षणिक योग्यता देखें तो 37 प्रतिशत सांसद ग्रेजुएट थे। 23.2 प्रतिशत सांसद मेट्रिक से भी कम पढ़े-लिखे थे। सांसदों की औसत आयु 45 वर्ष 8 माह थी। पहली लोकसभा में कुल 22 महिला सांसद थीं। इनमें रेणु चक्रवर्ती, सुचेता कृपलानी, राजकुमारी अमृत कौर, विजयालक्ष्मी पंडित और तारकेश् वरी सिन्हा प्रमुख थीं। लोकसभा के पहले अध्यक्ष दादासाहब गणोश वासुदेव मावलंकर थे। पंडित जवाहरलाल नेहरू पहले प्रधानमंत्री थे तो उनके सामने विपक्ष के प्रमुख नेताओं में आचार्य कृपलानी, एसपी मुकर्जी और एके गोपालन थे।
मौजूदा लोकसभा
मौजूदा यानि 15 वीं लोकसभा में कुल 543 सांसद हैं, जिनमें से 15.4 प्रतिशत वकील, 41 प्रतिशत जमींदार, किसान और भू-स्वामी, 16 प्रतिशत उद्योगपति या व्यापारी-व्यवसायी, 4.7 फीसदी शिक्षक या शिक्षाविद् और 24 प्रतिशत दीगर हैं। इनमें 147 सांसद स्नातक हैं। 19 सांसद मेट्रिक से भी कम पढ़े हैं। 33 प्रतिशत पीएच.डी या उसके समकक्ष शिक्षा प्राप्त हैं। वर्तमान लोकसभा में 60 महिलाएं हैं।
वर्तमान लोकसभा में ग्रेजुएट सांसदों की संख्या अधिक है पर शिक्षाविद् और शिक्षक कम हैं। डॉक्टर या लेखक-पत्रकार भी कम हैं। हां, उद्योगपतियों की संख्या बढ़ी है। इसकी वजह समझी जा सकती है। पहली लोकसभा के मुकाबले वर्तमान लोकसभा में वकील भी घटे हैं पर बौद्धिक स्तर की चर्चा बढ़ी है। आज यदि अरूण जेटली, सुषमा स्वराज, कपिल सिब्बल न हों तो लोकसभा में बौद्धिक स्तर का एकदम गिर जाए, ऐसा है। हकीकत में देखें तो जिन्हें सुनने की इच्छा हो ऐसे वक्ता रहे ही नहीं हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर के मुद्दों पर चर्चा नहींवत् होती है, जबकि नेहरू युग में अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा होती थी। नेहरू खुद ऐसे मुद्दे उठाते थे। दुनिया के किसी भी कोने में युद्ध की स्थिति होती थी तो भारत की संसद में उसका नोटिस लिया जाता था। अब अंतरराष्ट्रीय मुद्दों की बात तो छोड़े, राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा भी कम हो गई है और स्थानीय मुद्दे ही ज्यादातर चर्चा में रहते हैं।
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