इंडियन प्रिमियर लीग में शामिल कुछ खिलाड़ियों का ‘स्टिंग ऑपरेशन’ कर एक टीवी चेनल ने खलबली मचा दी है। पहले लंदन के एक टेब्लाइड साप्ताहिक द्वारा किए गए ऑपरेशन और इसमें अंतर है। ‘न्यूज ऑफ वर्ल्ड’ ने सलमान बट, मोहम्मद आसिफ और मोहम्मद आमेर जैसे वरिष्ठ खिलाड़ियों का पर्दाफाश किया तो ‘इंडिया टीवी’ के स्टिंग ऑपरेशन में टी. सुधींद्र मोहनीश मिश्र फंस गए। यह स्टिंग ऑपरेशन कितना विश्वसनीय है, इसकी खुलासा जल्द ही हो जाएगा। एक बात स्पष्ट है कि आज तक जितनी बातें, आरोप-प्रत्यारोप हुए हैं, वे मीडिया के मार्फत ही सामने आए हैं, यह पहली बार हुआ है कि संबंधित और शामिल खिलाड़ियों के श्रीमुख से उजागर हुआ है।
मुद्दा केवल मैच-फिक्सिंग या स्पॉट फिक्सिंग का नहीं? आईपीएल फ्रेंचाइजी की ओर से विभिन्न क्रिकेट खिलाड़ियों को उनकी सीमा से ज्यादा मानदेय ‘टेबल के नीचे से’ या पूथक से दी जाती है। मजे की बात यह है कि आईपीएल के बारे में ऐसी बातें फिक्सिंग का मामला सामने आने के पहले से की जाती रहीं थीं। केवल, फिक्सिंग का भूत आईपीएल की हद पारकर घरेलू क्रिकेट में भी घुस आने की बात टी. सुधींद्र के केमरे के सामने कबूल करने से स्पष्ट हो जाती है। एक घरेलू मुकाबले में सुधींद्र ने नो-बॉल डालने के 50 हजार रुपए लेने का उजागर हुआ है।
यह ‘स्टिंग ऑपरेशन’अप्रैल 2011 से शुरू हुआ है। इस कारण यह खेल आईपीएल के पांचवे संस्करण से ही शुरू हुआ है, यह नहीं कहा जा सकता। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड या बीसीसीआय ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए संबंधित वीडियो टेप्स बुलवा लिए हैं। इसके अलावा पांचों क्रिकेट खिलाड़ियों को 15 दिनों के लिए निलंबित कर दिया गया है। केवल एक ‘स्टिंग ऑपरेशन’पर से आनन-फानन कोई बड़ी कार्रवाई करना समझदारी नहीं कहलाती। तमाम क्रिकेट प्रशंसकों की इच्छा है कि बीसीसीआय का धैर्य कहीं लापरवाही या मामले को दबाने में न बदल जाए। आरोपित पांचों खिलाड़ी क्रिकेट की काली दुनिया के केवल प्यादे हैं।
फिक्सिंग या दूसरी चीजें भारतीय क्रिकेट में केवल आईपीएल में उनके माध्यम से ही नहीं आई हैं। इन प्यादों के आकाओं तक बीसीसीआय या जांच एजेंसी पहुंचेगी क्या? यही असली सवाल है। फिलहाल, इस सवाल का कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिल रहा, उसके कारण अनेक हैं।
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