बुधवार, 30 मई 2012

भारत की ‘हत्यारी राजनीति’

‘एक को गोली मारी..दूसरे को चाकू घोंपा और तीसरे को मरने तक मारा.’.ये किसी सिनेमा का डायलॉग नहीं या किसी निजी बैठक में सुपारी किलर द्वारा किया गया अट्टहास नहीं..केरल में माकपा के एक वरिष्ठ नेता ने सार्वजनिक सभा में यह स्वीकारोक्ति की है। मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं ने 1982-83 में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को किस प्रकार मौत के घाट उतारा, इसका ब्यौरा पार्टी के वरिष्ठ नेता एमएम मणि ने मुवत्त़पुझा में एक सभा में पेश किया, जिस कारण केरल सहित देश की राजनीति में खलबली मच गई है..इस बाबत भाकपा ने भी माकपा नेतृत्व से सफाई मांगी है..बहरहाल, मणि ने सभा में यह भी कहा कि पार्टी या मार्क्‍सवादी विचारधारा का विरोध करने वालों की हमने सूची बनाई थी।

सन् 1980 से लेकर अब तक ऐसे 13 कार्यकर्ताओं को मौत के घाट उतारा गया..बेबी अंचेरी को नवंबर 1982 में गोली मारकर मौत के घाट उतारा गया..जनवरी 83 में मुल्लनचिरा मथाई को पीट-पीटकर मारा गया तो जून 1983 में मुत्तुकड नानप्पन को घोंपकर मारा गया।

तीस साल पहले की ये घटनाएं अब उजागर हुईं हैं, मगर अब भी केरल में वामपंथियों की ‘खूनी क्रांति’ का सिलसिला थमा नहीं है। पिछले चार महीनों में हुई दो हत्याएं इस बात का सबूत हैं..इनमें से एक हत्या तो इसी महीने हुई है..क्रांतिकारी मार्क्‍सवादी पार्टी के नेता टी.पी. चंद्रशेखरन को जब वे अकेले माटरसायकल पर सवार होकर जा रहे थे, तब अज्ञात लोगों ने उन पर देशी बम फेंका और उन पर हथियारों से वार कर मौत के घाट उतार दिया गया। वे पार्टी के वरिष्ठ नेता वी.एस.अच्युतानंदन के समर्थक थे और तमाम मतभेदों के चलते उन्होंने पार्टी छोड़कर चार साल पहले क्रांतिकारी मार्क्‍सवादी पार्टी का गठन किया था।

चंद्रशेखरन की हत्या के ढाई महीने पहले बीस फरवरी को कन्नूर जिले में मुस्लिम स्टुडेंट फ्रंट के कार्यकर्ता अब्दुल शकूर की चाकू घोंपकर हत्या कर दी गई। इन दोनों हत्याओं में माकपा कार्यकर्ताओं के शामिल होने की बात उजागर होने के बाद माकपा के अनेक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया है। चंद्रशेखरन की हत्या के मामले में माकपा कार्यकर्ताओं का नाम आने के बाद वी.एस.अत्युतानंदन ने नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ने की धमकी भी दी है। इस बीच कांग्रेस कार्यकर्ताओं की हत्या की सार्वजनिक स्वीकारोक्ति करने पर एमएम मणि के खिलाफ हत्या का एवं हत्या की साजिश रचने का मुकदमा दर्ज कर लिया गया है।

पश्चिम बंगाल और केरल को छोड़ दें तो वामपंथियों को कहीं भी सत्ता तक पहुंचने का मौका नहीं मिला है। देश के अनेक राज्यों में तो उसके विधायक भी नहीं है। यह पता होने के बाद भी आम आदमी, श्रमजीवियों की लड़ाई सड़कों पर लड़ने के मामले में वे आगे हैं..समाज के सर्वहारा वर्ग की समस्याएं केवल कम्युनिस्ट ही उठा सकते हैं..आजादी के बाद इस देश में अनेक घपले-घोटाले हुए हैं..सभी दलों के नेता भ्रष्टाचार में नहा लिए हैं..परंतु कभी कम्युनिस्ट नेता पर भ्रष्टाचार का आरोप भी नहीं लगा..इसलिए भारतीय राजनीति का अधपतन होते हुए भी वे अपने तईं टिके हुए थे..देश की राजनीति में उनके प्रति सम्मान भी था पर मणि के रहस्योद्घाटन के बाद वामपंथियों का जो ‘खूनी चेहरा’ उजागर हुआ है, यह कलंक तमाम कोशिशों के बाद भी धुल नहीं पाएगा।

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