केंद्र की कांग्रेसनीत यूपीए सरकार में एक से बढ़कर एक अर्थशास्त्र के ज्ञाता बैठे हैं..प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहनसिंह खुद रिजर्व बैंक के गवर्नर रह चुके हैं और पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री हैं..नरसिंहराव की सरकार में जब आर्थिक उदारीकरण की नीति अपनाई गई, तब वित्तमंत्री डॉ. मनमोहनसिंह ही थे..या यूं कहें कि विश्व बेंक के कहने पर ही वित्त मंत्रलय की बागडोर सौंपी गई थी तो गलत नहीं होगा। मौजूदा गृहमंत्री पी. चिदम्बरम को भीअर्थशास्त्र के ज्ञाता के रुप में जाना जाता है..वे कई बार वित्तमंत्री की जिम्मेदारी निभा चुके हैं..वर्तमान वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी भी किसी अर्थशास्त्री से कम नहीं। पिछले कुछ सालों में जीडीपी दर 8 प्रतिशत के ऊपर कायम रखने और 2008 में देश को आर्थिक मंदी से बाहर निकालने का श्रेय भी प्रणब दा को जाता है..ऐसे अपने प्रणबदा रुपए की कीमत में सतत् गिरावट से चिंता में पड़ गए हैं..यूरोप में बढ़ती बेरोजगारी, आर्थिक मंदी और अस्थिर अमेरिकी अर्थव्यवस्था का प्रभाव दुनिया भर की अर्थव्यवस्था पर पड़ा है।
विदेशी निवेशकों का तो जैसे भारतीय अर्थव्यवस्था पर से विश्वास ही उठ गया है..डॉलर की मजबूती के कारण दुनिया भर की दूसरी मुद्राओं में गिरावट के परिप्रेक्ष्य में रुपया भी दिनों-दिन गिरावट के रेकार्ड बना रहा है..रुपए में लगातार हो रही गिरावट के कारण प्रणबदा की नींद उड़ गई है..रुपए के अवमूल्यन का सीधा असर जनता की जेब पर पड़ता है, महंगाई सुरसा के मुंह की माफिक बढ़ती है..पिछले हफ्ते भी जब पेट्रोल के दामों में साढ़े सात प्रति लीटर की वृद्धि हुई तो जनता में हाहाकार मच गया..रुपए की गिरावट को रोकने रिजर्व बेंक सक्रिय हो गई..
वो अब तक नहीं रोक पाई तो अब क्या रोक पाएगी? रुपए की किस्मत में लुढुकना लिखा है तो वह लुढ़केगा ही..पर दो साल के भीतर देश में आम चुनाव होने हैं..ऐसे में महंगाई का मुद्दा कांग्रेस की हवा बिगाड़ सकता है, इसलिए रुपए में गिरावट को रोकना वित्तमंत्री के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई है..देखना दिलचस्प होगा कि रुपए की गिरावट को रोकने में कितना सफल हो पाते हैं प्रणबदा।
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