एक अदद नरेंद्र मोदी के आगे, पं. दीनदयाल उपाध्याय और श्यामाप्रसाद मुखर्जी के सपनों की पार्टी भारतीय जनता पार्टी तो ठीक आरएसएस को भी झुकना पड़ा है। मोदी की जिद थी कि उनके कट्टर विरोधी संजय जोशी को पार्टी में किसी भी पद पर नहीं रखा जाए, नहीं तो वे मुंबई में होने वाली कार्यकारिणी की बैठक में भाग नहीं लेंगे।
बस, मोदी की इस जिद के आगे पार्टी और संघ दोनों झुक गए, लेकिन इससे यह उजागर हो गया कि संघ और भाजपा दोनों मोदी की जेब में है। संजय जोशी को पार्टी से बाहर कर नरेंद्र मोदी भले ही खुश हो लें, मगर इससे पार्टी के आम कार्यकर्ताओं में अच्छा मेसेज नहीं गया है। गुजरात ही नहीं, मप्र सहित अनेक राज्यों में संजय जोशी समर्थक कार्यकर्ता बड़ी तादाद में हैं और उन्हें पार्टी के इस निर्णय से तगड़ा झटका लगा है। संजय जोशी के इस्तीफे की खबर मिलते ही गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल के गांधीनगर स्थित बंगले पर आरएसएस के तमाम स्वयंसेवकों का हुजूम पड़ा था।
उन्हें इस बात का अफसोस था कि पार्टी नेतृत्व आखिर क्यों नरेंद्र मोदी की जिद के आगे झुक गया। नरेंद्र मोदी की माफिक संजय जोशी भी संघ की आंख के तारे हैं। संजय जोशी की पार्टी के प्रति निष्ठा को लेकर कोई सवाल ही नहीं उठता। आज गुजरात और मध्यप्रदेश जैसे राज्य भाजपा के गढ़ हैं तो उसके पीछे संजय जोशी का दिमाग है। मोदी के कारण ही संजय जोशी को इतने सालों तक वनवास काटना पड़ा था।
केशुभाई पटेल जैसे नेता भी संजय जोशी के संगठन-कौशल के मुरीद हैं? केशुभाई के अनुसार, मुङो याद है जब 2004 में मप्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी थी और उमा भारती को मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, तब पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने मुङो खासतौर पर दिल्ली बुलाया था। आडवाणी ने संजय जोशी की बहुत तारीफ की थी और कहा था-‘आपके जोशीजी ने तो बड़ा कमाल कर दिया।
जोशीजी की मेहनत के कारण ही पार्टी मध्यप्रदेश में सत्ता में आ सकी है।’ गुजरात को भी भाजपा का गढ़ बनाने में जोशी की अहम् भूमिका रही है। 1995 में संजय जोशी ने गुजरात विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी निभाई थी, तब भाजपा को 117 सीटें मिली थीं। 1998 में भी भाजपा को 121 सीटें मिली थीं। संजय जोशी के अनुशासित होने पर भी कोई ऊंगली नहीं उठा सकता। ऐसे निष्टावान, समर्पित और अनुशासित संजय जोशी को पार्टी से बेदखल कर भाजपा ने ठीक नहीं किया।
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