गुरुवार, 24 मई 2012

क्या एहसानफरामोश है बच्चन परिवार?

लाख टके का सवाल ये है कि रेखा को राज्यसभा में लाए जाने के पीछे राजनीति क्या है? फिल्म कलाकार भी दिल्ली की राजनीति बिग बी यानि अमिताभ बच्चन के माता-पिता तेजी बच्चन और हरिवंशराय बच्चन कभी जवाहरलाल नेहरू के नजदीक थे..दोनों ने नेहरू के प्रभाव का भरपूर लाभ उठाया..इन संबंधों के कारण ही इंदिरा गांधी के बेटे राजीव गांधी के साथ अमिताभ बच्चन स्कूल के दिनों में ही मित्र बन गए थे। 
राष्ट्रपति भवन के प्राइवेट थियेटर में प्रदर्शित होने दुनिया की श्रेष्ठतम फिल्मों को देखने के लिए राजीव अपने साथ अमिताभ को भी ले जाते थे..इन फिल्मों को देखकर ही अमिताभ को फिल्मों के प्रति रूचि पैदा हुई..अमिताभ ने पुणो जाकर फिल्म इंस्टिटय़ूट में दाखिला ले लिया..वहां से पास होने के बाद उन्हें फिल्मों में काम नहीं मिल रहा था तो इंदिरा गांधी ने के.ए.अब्बास को फोनकर अमिताभ बच्चन को काम देने की सिफारिश की थी..के.ए. अब्बास ने इंदिराजी के कहने अमिताभ को ‘सात हिंदुस्तानी’ फिल्म में मौका दिया..एक हताश एक्टर को ब्रेक मिल गया..लेकिन उसके बाद आई ‘जंजीर’ फिल्म ने उसे स्टार बना दिया..अमिताभ-धर्मेद्र के अभिनय वाली फिल्म ‘शोले’ बनी तब देश में आपातकाल था..और फिल्मों में हिंसा दिखाने पर सख्त प्रतिबंध था..‘शोले’ को सेंसर सर्टिफिकेट नहीं मिल रहा था..तब इंदिरा गांधी के दखल के बाद  ‘शोले’ फिल्म पास हुई थी..यह गांधी परिवार का तीसरा ऐहसान था..
राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तो वे अपने बचपन के मित्र अमिताभ को भी राजनीति में ले आए..अमिताभ को इलाहाबाद से टिक दिया और लोकसभा सदस्य बना दिया..यह गांधी परिवार का बच्चन परिवार पर चौथी मेहरबानी थी..अमिताभ को राजनीति रास नहीं आई और सक्रिय राजनीति छोड़ दी..पर भीतर से नहीं छोड़ी..सवाल उठता है कि आखिर अमिताभ कांग्रेस के इतने ऐहसानों के बाद कांग्रेस के कट्टर विरोधी मुलायमसिंह की पार्टी से क्यों जुड़े? यह जानना वाकई जरूरी है। अमिताभ बच्चन ने सन् 1995 में एबीसीएल (अमिताभ बच्चन कारपोरेशन लिमिटेड) कंपनी बनाई थी। 1996 में इस कंपनी ने मिस वर्ल्ड काम्पीटिशन करवाया था।

अमरसिंह को भी नहीं छोड़ा

यह कंपनी मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में कुप्रबंधन के कारण करोड़ों रुपए के घाटे में चली गई थी और इस कारण अमिताभ बच्चन की आर्थिक स्थिति गड़बड़ा गई थी। केनरा बेंक का कर्ज चुकाने जैसी स्थिति तो कतई नहीं थी। गर्दिश के उन दिनों में बच्चन ने एक बार फिर गांधी परिवार से मदद की गुहार की और कर्ज माफ करने की बात कही.तब न इंदिरा गांधी थीं और न ही राजीव गांधी..थीं तो सोनिया गांधी..चूंकि कर्ज बेंक का था, लिहाजा गांधी परिवार इस बार बच्चन परिवार की मदद नहीं कर पाया..गांधी परिवार के साफ इनकार करने के बाद अमिताभ बच्चन ने कभी बिड़ला के लाइजनिंग आफिसर रहे जुगाडू अमरसिंह से बात की..अमरसिंह उन दिनों ‘नेताजी’ मुलायमसिंह के खासुलखास थे..अमरसिंह कांटे से कांटा निकालने की राजनीति में उस्ताद हैं..उन्होंने जैसे-तैसे अमिताभ के लिए धनराशि की जुगाड़ की..इसके बाद अमिताभ ही नहीं पूरा परिवार कांग्रेस विरोधी मुलायमसिंह की पार्टी का मुरीद हो गया..जया बच्चन यदि आज राज्यसभा में विराजमान है तो उसकी असली वजह यही है..गांधी परिवार को लगा कि बच्चन परिवार ने उनके साथ विश्वासघात किया है..

ये घटना नेहरू-गांधी परिवार के लिए एक झटके के समान थी..बच्चन परिवार ने केवल गांधी परिवार के साथ ही दगा नहीं किया, उसने अमरसिंह के साथ भी ऐसा ही किया..याद रखें अमरसिंह ने ही बच्चन परिवार को ‘नेताजी’ से जोड़ा था..जब ‘नेताजी’ मुलायमसिंह ने अमरसिंह को समाजवादी पार्टी से निकाल बाहर किया..तब अमरसिंह का साथ देने के बजाय बच्चन परिवार पद और प्रतिष्ठा के लोभ में मुलायमसिंह से ही जुड़ा रहा। अमरसिंह को भी यही लगता है कि बच्चन परिवार अवसरवादी है। गांधी परिवार तो पहले ही जान चुका था।

निशाने पर लगा 10 जनपथ का तीर

अब सवाल उठता है कि ऐसे बच्चन परिवार को किस प्रकार जवाब दिया जाए? उसका एक ही जवाब था-रेखा। रेखा गणेशन, बच्चन परिवार का बहुत ही नाजुक और संवेदनशील मुद्दा है। कांग्रेसनीत युपीए सरकार ने राष्ट्रपति के जरिए रेखा को राज्यसभा में भ्जिवा दिया और जया बच्चन के बाजू की सीट भी आवंटित करवा दी। जया बच्चन को यह नागवार गुजरा तो उन्होंने अपनी सीट बदलवा ली..शपथ ग्रहण के दौरान जब टीवी ने हाव-भाव दिखाए, उस पर भी जया कुपित हुईं..यह सिलसिला यहीं नहीं रूकने वाला.. ‘सिलसिला-2’ के पीछे किसका दिमाग है, यह तो नहीं पता परंतु ग्लेमरस रेखा के संसद-प्रवेश के पीछे राजनीति भी बेहद रोचक व दिलचस्प है। लगता है, 10 जनपथ से चला तीर निशाने पर लगा है।

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