क्रिकेट के भगवान, शतकों का महाशतक लगाने वाले सचिन तेंदुलकर अब राज्यसभा की शोभा बढ़ाने वाले हैं। अब तक अनेक हस्तियां राज्यसभा को सुशोभित कर चुकी हैं। उनमें स्वर-साम्राज्ञी लता मंगेशकर से लेकर हेमा मालिनी, शबाना आजमी तक अनेक हस्तियों का शुमार है। शबाना के पति जावेद अख्तर बाद में राज्यसभा सदस्य बने। राज्यसभा में ऐसी हस्तियों का मनोनयन राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है, जिन्होंने सामाजिक जीवन के किसी भी क्षेत्र में नाम कमाया है, अच्छा प्रदर्शन किया है। राष्ट्रपति को ऐसे चार लोगों का मनोनयन करने का अधिकार है।
इन सदस्यों की गणना किसी राजनीतिक दल में नहीं होती है। यानि उन्हें किसी राजनीतिक दल में जाने की स्वतंत्रता होती है पर संसद को उनके अनुभव का लाभ मिल सके, यही अपेक्षा होती है। इस फेहरिश्त में अब सचिन तेंदुलकर भी जुड़ गए हैं। फिल्म अभेिनत्री रेखा और उद्योगपति अनु आगा भी राज्यसभा में होंगे, किंतु रेखा और अनु आगा को लेकर कोई क्रिया-प्रतिक्रिया नहीं हुई, विवाद हुआ तो केवल सचिन के नाम पर। उनके विरोधियों ने या सत्तादल के विरोधियों ने यह विरोध किया होता तो समझा जा सकता था पर सचिन के खास चहेतों ने ही यह विवाद पैदा किया है। राजनीति की यह चमत्कारिक घटना है।
मसलन प्रसिद्ध क्रिकेट समीक्षक हर्ष भोगले, द्वारकानाथ सांझगिरी-अपने लेखन या समीक्षा में अक्सर सचिन की तारीफ करते नहीं थकते थे, यहां तक कि जब सचिन अच्छा नहीं खेल रहे होते थे तब भी वे सचिन की आलोचना नहीं करते थे। ये ही आज सचिन की राज्यसभा सदस्यता पर ऊंगली उठा रहे हैं। खेल-जगत का पता नहीं पर राजनीति में ऐसा कभी नहीं होता कि जिस नेता के बुरे दिन चल रहे हों, उसके चेले-चपाटी अपने नेता के खिलाफ आवाज नहीं निकालते। कुछ समय पूर्व संपन्न उत्तरप्रदेश के चुनाव की ही बात करें तो राहुल गांधी के धुआंधार प्रचार के बावजूद कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। इस पराजय की जिम्मेदारी राहुल गांधी को ही देना होगी, पर इस अपयश के लिए दिग्विजयसिंह, सलमान खुर्शीद सहित कई नेता उनके बचाव में आ गए। वे खुद पराजय की जिम्मेदारी ओढ़ नहीं रहे थे बल्कि इस हार में भी राहुल के प्रचार का बखान कर रहे थे, लेकिन यहां तो ठीक उलटा हो रहा है। अपने खास चहेतों को ही सचिन के इस खेल ने स्तब्ध कर दिया है। हकीकत में तो सचिन के प्रशंसकों को उसका राज्यसभा में जाना नागवार गुजरा है, पसंद नहीं आया है।
यह अजीबोगरीब स्थिति सचिन के मामले में पैदा हो गई है। उसके खास चाहने वाले ही नहीं, वे प्रशंसक भी जो उसके खेल के दीवाने हैं, उसकी इस नई पारी से खासे नाराज हैं। कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ है। चर्चाओं का दौर जारी है। हर चर्चा के बाद उसका निष्कर्ष निकाला जा रहा है। कोई इस मामले में टीवी पर होने वाली बहस देखने को तैयार नहीं है तो कोई कह रहा है कि सचिन को भारत र} नहीं देना था, इसलिए राज्यसभा का दाव खेला गया, लेकिन इस बात में कोई दम नहीं है। ऐसा कोई उदाहरण नहीं है कि सांसद या राजनीति के किसी व्यक्ति को भारत र} नहीं दिया जा सकता। ऐसा कहने वाले लोग यह भी नहीं जानते कि अब तक किस-किस को भारत-र} मिल चुका है। इंदिरा गांधी को भी यह सम्मान मिल चुका है। चार दशक पूर्व सन् 1971 में भारत-पाक में युद्ध हुआ था, जिसमें बांग्लादेश का निर्माण हुआ था। इस युद्ध में पाकिस्तान को मुंहकी खाना पड्ी थी, तब प्रघानमंत्री इंदिरा गांधी थीं, इसलिए उन्हें भारत र} दिया गया था। प्रधानमंत्री थीं, अर्थात सांसद भी थीं नां! जो सांसद है उसे भारत-र} नहीं दिया जा सकता, फिर यह बात उपजी कहां से?
कांग्रेस पर ऐसा दबाव किसी ने बनाया भी नहीं है कि सचिन को अभी भारत-र} दिया जाए। फिर उसे टालने के लिए राज्यसभा में सांसद के रूप में मनोनीत किए जाने का विषय आता ही कहां से है? फिर भारत-र} नकारने के लिए उसे राज्यसभा में भेजने की बात करना मूर्खता है। इसके अलावा सचिन को राज्यसभा में लाने की असल वजह कुछ और हो सकती है और चर्चा उस पर होना चाहिए। सचिन के साथ ही रेखा और अनु आगा को भी महामहिम राष्ट्रपति ने राज्यसभा सदस्य मनोनीत किया है पर सचिन का मामला अलग है। रेखा और अनु आगा को दिल्ली नहीं जाना पड़ा और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से भेंट नहीं करना पड़ी। सचिन को जो करना पड़ा, वह इन दोनों को क्यों नहीं करना पड़ा?क्या उनके मनोनयन के पूर्व उनकी सहमति लेना जरूरी नहीं थी। और फिर, सचिन अकेला है जिसके मनोनयन के पूर्व सहमति ली गई। क्या ऐसा कोई कानूनी प्रावधान है? यह सबसे उल्लेखनीय तथ्य है, लेकिन हमारी न्यूज चेनलों या अखबारों में वह खबर नहीं सका। सचिन, रेखा और अनु आगा समान दज्रे के राज्यसभा सदस्य होंगे, तब उनके मनोनयन में यह भेदभाव क्यों? सचिन के दस जनपथ पहुंचते ही मीडिया ने उसके राज्यसभा सदस्य बनने की खबरें दिखाना शुरू कर दीं, जबकि रेखा और अनु आगा के मामले में ऐसा नहीं हुआ। दूसरे मामलों में गृह मंत्रलय कार्रवाई करता है तो सचिन के मामले में सोनिया गांधी की मंजूरी जरूरी क्यों हो गई़?
सारी गफलत, बस यहीं हुई। दो-दो दिन तक न्यूज चेनल्स ने सचिन को लेकर आसमान सिर पर उठा लिया, पर किसी ने यह जानने और पूछने की कोशिश नहीं की कि सचिन दस जनपथ क्यों गया था? रेखा और अनु आगा क्यों नहीं गई? बेशक, सचिन भारत-र} है और उसका जितना सम्मान किया उतना कम है, लेकिन राजीव शुक्ला जैसे जुगाडू नेता सचिन की तारीफ में कसीदे काढ़े, सचिन इतना भी गिरा नहीं है। अंग्रेजी में कहा जाता है कि जब उचित और सटीक जवाब चाहिए, तब गलत सवाल नहीं पूछना चाहिए। सचिन के राज्यसभा सदस्य बनने के मामले में यही हुआ है। सर्वत्र गलत सवाल पूछे जा रहे थे, तब सही और सटीक जवाब मिलता कैसे?
आज तक ऐसा नहीं हुआ कि राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत कोई भी सदस्य पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी या किसी राजनीतिक दल के अण्यक्ष से उसके घर जाकर मिला हो तो सचिन तेंदुलकर के साथ ही ऐसा क्यों हुआ? सचिन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहनसिंह से मिलता तो समझ में आता, पर जो निर्णय प्रधानमंत्री या उनका मंत्रिमंडल करता है और उनकी सलाह के मुताबिक ही राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत सदस्य का चयन होता है, तब सचिन जैसी हस्ती को दस जनपथ क्यों जाना पड़ता है? यही उचित सवाल है पर यह सवाल किसी ने नहीं पूछा और इस कारण सही जवाब भी नहीं मिल सका, इसलिए उसके खास मित्र-समीक्षक और प्रशंसक नाराज है।
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