रविवार, 29 जुलाई 2012

ऐसा तो आपातकाल में भी नहीं हुआ!

कर्नाटक विधानसभा की विशेषाधिकार हनन समिति ने बेलगाम के मराठी दैनिक ‘तरुण भारत’ में प्रकाशित कुछ खबरों के आधार पर उसके खिलाफ विशेषाधिकार हनन का मामला चलाए जाने की सिफारिश की है. इसी तरह,‘तरुण भारत’ के संपादक किरण ठाकुर को 30 जुलाई को माफी मांगने का फरमान भी जारी किया है.
यह विवाद यहीं नहीं थमा है. अखबार की मान्यता रद्द करने के लिए प्रेस कौंसिल को पत्र भेजने का भी तय किया गया है. स्वतंत्रता के बाद और आपातकाल में भी अखबारों की स्वतंत्रता पर जितना शिकंजा नहीं कसा गया था, उससे भी बड़ा हल्ला कर्नाटक सरकार ने ‘तरुण भारत’ पर किया है. इस संदर्भ में ‘तरुण भारत’ के संपादक किरण ठाकुर ने सर्वोच्च न्यायालय में कानूनी लड़ाई लड़ने का फैसला किया है. 
वह उनका संवैधानिक अधिकार है पर इस कर्नाटक सरकार के इस फैसले के विरोध में तमाम दैनिकों को इकट्ठे होकर संपादक किरण ठाकुर का साथ देना चाहिए. अखबारों के बीच व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा होती है और होना भी चाहिए किंतु आज ‘तरुण भारत’ पर हमला हुआ है या वह कटघरे में है तो इसका मतलब यह नहीं कि दूसरे अखबार सुपात्र हैं. हकीकत में यह लड़ाई बेलगांव के दो विधायक विरुद्ध ‘तरुण भारत’ दिखाई पड़ती है. इसके पीछे पिछले अनेक वर्षो से महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच चला आ रहा सीमा विवाद है. वैसे ही कर्नाटक सरकार मराठी द्वेष भी एक कारण है. वास्तविकता यह भी है कि सीमावर्ती इलाके में ‘तरुण भारत’ का स्थान दूसरे दैनिकों के मुकाबले अलग ही है. स्व. बाबूराव ठाकुर बेलगांव सीमा लड़ाई के दौरान अग्रणी भूमिका में थे. 
करीब 94 वर्ष पूर्व कर्नाटक सरकार की तानाशाही के विरुद्ध मराठियों की आवाज बुलंद करने के लिए उन्होंने बेलगांव से यह मराठी दैनिक शुरु किया था. सीमावर्ती इलाके के मराठीभाषियों का यह एकमात्र आधार है पर कर्नाटक सरकार ने बेलगांव के दो विधायकों के माध्यम से इस मराठी दैनिक पर हल्ला बोला है. इस पूरे मामले में कर्नाटक सरकार का रवैया अन्यायपूर्ण दिखता है. उसका समर्थन कोई भी नहीं करने वाला. तरुण भारत के इस मामले का आधार लेकर कल देशभर के सांसद-विधायक किसी दैनिक अखबार या पत्रकार पर ऐसी कार्रवाई करना चाहेंगे. नतीजा यह होगा कि इसके बाद कोई अखबार या पत्रकार  किसी जन प्रतिनिधि के खिलाफ खबर नहीं छाप पाएगा. 
ऐसा हुआ तो किसी न किसी दैनिक पर आए दिन सेंसरशिप लागू कर दी जाएगी और वह बर्दाश्त नहीं होगी, इसलिए देश के भर के तमाम अखबारों, संपादकों, पत्रकारों और संपूर्ण मीडियाकर्मियों को ‘तरुण भारत’ के समर्थन में आगे आने की और कर्नाटक सरकार के रवैये का विरोध करने की जरूरत है. कर्नाटक के बेलगांव (दक्षिण) के विधायक अभय पाटील और और रायबाग-कुड विधानसभा क्षेत्र के विधायक श्याम घाटगे के अन्याय के खिलाफ और उनके अवैध कार्यो के बारे में खबरें प्रकाशित करना, 
विशेधिकार हनन का मामला कैसे बनता है? विशेषाधिकार हनन की व्याख्या स्पष्ट होकर वह सदन से संबंधित होती है. ये खबरें  विधायकों के विधानसभा के बाहर के कृत्यों  और उनके रवैये से संबंधित है. यह विशेषाधिकार समिति के कार्यक्षेत्र में कैसे आ सकता है? लेकिन, कर्नाटक में  ऐसा करने की कोशिश की गई है. इस पूरे मामले का एक अर्थ कांटे से कांटे से निकालना भी हो सकता है.

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