गुरुवार, 19 जुलाई 2012

राजेश खन्ना: दीवानगी का वह दौर अब नहीं आएगा

एकाधि फिल्म अभिनेता जब ढेर सारी लोकप्रियता पा लेता है, तब वह केवल पर्दे तक ही सीमित नहीं रहता..पर्दे से बाहर भी उसकी भूमिका समाज का एक भाग बनती है..वह कलाकार विशिष्ट सामूहिक भाव-भावनाओं, सपनों का प्रतीक बन जाता है..सत्तर के दशक में राजेश खन्ना को भी निर्विवाद रुप से यह सम्मान मिला था और इसीलिए जब ‘काका’के निधन की दुखद खबर आई तो एक पीढ़ी को ऐसा कि उनके जीवन का एक भाग कोई चुरा ले गया..


राजेश खन्ना की लोकप्रियता जब चरम पर थी, तब लड़कियां उन्हें खून से खत यानी पत्र लिखतीं.. अनेक लड़कियों ने राजेश खन्ना के चित्रों के साथ विवाह किया था..उसके दीदार,दर्शन के लिए उसके बंगले ‘आशीर्वाद’ के बाहर प्रशंसक घंटों खड़े रहते थे..राजेश खन्ना की गाड़ी बाहर निकली कि एक झलक ही क्यों न देखने मिले, लडकियां-महिलाएं सिगAल के पास खड़ी रहतीं..घर से निकली उसकी सफेद झक कार वापस घर लौटने तक युवतियों के लिपिस्टिक से गुलाबी हो चुकी होती थी..युवा उसके जैसा शर्ट पहनते..उसके जैसी हेयरस्टाईल..गर्दन हिलाने की अदा..हाथ से पतंग उड़ाने की कला..तब की युवा पीढी ने आत्मसात् किया था. 

राजेश खन्ना का क्रेज ही ऐसा था. इनमें से अनेक बातें आज की युवा पीढ़ी को शायद अतिरंजित, कपोलकल्पित लगेगी, पर उस जमाने का यह सच था.. ‘सुपर स्टार’ शब्द जैसे राजेश खन्ना के लिए ही बना था, ऐसा एकमात्र फिल्म अभिनेता.. फिल्म इंडस्टी में लोकप्रिय होने वाले एक नहीं अनेक कलाकार हैं पर राजेश खन्ना की लोकप्रियता उन सबसे अलग ही है.. मुङो लगता है दीवानगी का वह दौर राजेश खन्ना के साथ ही चला गया. 

‘काका’ ने तब की युवा पीढ़ी को एक अलग ही दुनिया में घुमाया. वह पीढ़ी राजेश खन्ना के साथ ही हंसी, गाई, रोई, वह भी उसकी ही स्टाईल में! राजेश खन्ना ने रुपहली पर्दे पर जो किया, उसके दीवाने उसे अपनी जिंदगी में लाने की कोशिश करते थे. यही वजह है कि ‘आनंद’ में जब ‘बाबू मोशाय’ की पुकार राजेश खन्ना के मुंह से जिस उत्कृष्ट शैली में निकलती है तो वह हरेक के हृदय तक पहुंचती है..उसकी ऐसी हर पुकार, हर डायलॉग लोगों को जोड़ने वाला होता था. संबंधों के स्नेह को तगड़ा आधार देने वाला था. मानवीय जीवन के प्रति सकारात्मक सोच को जगाने वाली फिल्में राजेश खन्ना ने की. ‘आनंद’में उनकी भूमिका आज भी तमाम लोगों के जेहन में होगी. 

जिंदा रहने की जिजीविषा और जिदंगी को सुंदर बनाने की जो उर्मि उन्होंने दी, वह वाकई अविस्मरणीय है. यही वजह है कि यह नायक समाज से कभी दूर नहीं जा पाया. इस सुपर-स्टार को  सुपरमेन बनने की चाह कभी नहीं रही. इंसान के सहज-सुलभ भाव-भावनाओं के रंग रंगते हुए लोगों को उन्होंने अपने आकर्षण से बांध लिया था. वो राजेश खन्ना ही थे जिन्होंने एक पूरी पीढ़ी को प्रेम करना ही नहीं सिखाया, बल्कि प्रेम की तहजीब भी सिखाई. प्रेम के साथ ही त्याग की भावना का पाठ भी पढ़ाया. ईष्या हो, इस हद तक लोकप्रियता राजेश खन्ना के हिस्से में आई. 

शायद उसका राज भी यही है. ‘आय हेट टियर्स’ यानि मैं आंसुओं का तिरस्कार करता हूं, ये डायलॉग ‘अमरप्रेम’ ‘आनंदबाबू’ जब अपने मुखारविंद से निकालते हैं तब ऐसा लगता है जैसे वे जीवन के तत्वज्ञान को सहजता भाव से कह गए हों. ‘अमरप्रेम,’ ‘आपकी कसम,’‘नमक हराम,’ ‘दुश्मन’ ‘दाग’ ‘रोटी’ ऐसी अनेक फिल्मों में उन्होंने संवेदनशील अभिनय कर अपने प्रशंसकों को आनंदित कर दिया था. ‘बावर्ची’का रघु ऐसा लगता है जैसे अपने परिवार का ही कोई है.

फिल्म इंडस्टी में अपना मुकाम तलाशने साठ के दशक में राजेश खन्ना का संघर्ष शुरु हुआ. उस काल में खुद की स्पोर्ट्स कार से स्टुडियो जाने वाला राजेश खन्ना इकलौता उदीयमान कलाकार था. ‘राज’और ‘आखिरी खत’जैसी कुछ फिल्मों के बाद शक्ति सामंत की ‘आराधना’आई और फिर शुरु हुआ-‘राजेश खन्ना युग.’ अच्छी पटकथा, आला दर्ज के निदेशक, हसीन सुंदरियां, सह कलाकार, संगीतकार, गायक आदि का भी उसकी सफलता में योगदान था  पर नायक था राजेश खन्ना. राजेश खन्ना ने अपने लंबे केरियर में तमाम अभिनेत्रियों के साथ काम किया, लेकिन जोड़ी जमी मुमताज और शर्मिला टेगौर के साथ. किशोर कुमार ही उनकी ‘आवाज’थे. ‘जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मकाम, वो फिर नहीं आते.’हमें भी यही कहना पड़ेगा, वाकई नहीं आते.

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