मुंबई। ‘बाबू मोशाय, जिंदगी और मौत ऊपरवाले के हाथ हैं जहांपनाह..जिसे ना तो आप बदल सकते हैं ना मैं..हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं, जिसकी डोर उपरवाले की ऊंगलियों में बंधी हैं..कब कौन कैसे उठेगा कोई नहीं बता सकता..’
‘आनंद’ फिल्म के इस डायलॉग से जीना सिखाने वाले और क्षणभंगुर जीवन का यथार्थ बताने वाले बालीवुड के पहले सुपर-स्टार, हिंदी सिने-जगत के ‘काका’ राजेश खन्ना जिदगी के एक ऐसे सफर पर निकल गए जहां से अब वे कभी लौटकर नहीं आएंगे..‘अंदाज’ फिल्म का यह गीत ‘जिदगी एक सफर है सुहाना, यहां कल क्या हो किसने जाना’ आज भी गुनगुनाया जाता है..
सत्तर के दशक में राजेश खन्ना का जलवा था और अपने चाहने वालों में वो ‘काका’ के नाम से विख्यात थे.‘आराधना’,‘अमरप्रेम’और ‘अंदाज’ जैसी अनेक फिल्मों ने सिल्वर जुबिली और गोल्डन जुबिली मनाई थी..हाल ही में उन्होंने एक फेन कंपनी के विज्ञापन में काम किया था..40 साल के केरियर में राजेश खन्ना ने 180 फिल्मों में अभिनय किया था. उन्हें तीन मर्तबा ‘फिल्म फेयर’अवार्ड से सम्मानित किया गया था. विनम्र श्रद्धांजलि.
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