मंगलवार, 17 जुलाई 2012

राहुल की ताजपोशी की तैयारी!

‘राहुल गांधी पार्टी अथवा राजनीति में तेजी से आगे बढ़ते, तो शायद उन्हें मीडिया की प्रतिक्रिया से रूबरू होना पड़ता, पर अब उन्हें नेत़त्व स्वीकार करने के लिए आगे आना चाहिए, यह मांग पार्टी में उठने लगी है. राहुल गांधी के सक्रिय होने का वक्त आ गया है.’ कांग्रेस महासचिव दिग्विजयसिंह ने अपनी ये भावनाएं एक चेनल पर व्यक्त कीं. ये भावनाएं उनकी अकेले की न होकर कांग्रेस के लाखों कार्यकर्ताओं की भी है.


कांग्रेस पार्टी के कतिपय महत्वपूर्ण फैसलों में राहुल की भूमिका रही तो भी नेतृत्व की कमान उन्होंने नहीं सम्हाली. पार्टी के भविष्य का विचार कर उन्होंने युवक कांग्रेस को मजबूत करने पर गंभीरतापूर्वक ध्यान दिया और संगठन स्तर पर कुछ साहसी निर्णय भी लिए. नेहरू-गांधी परिवार के विरोध में मर्यादाएं लांघकर जहर उगलने तक प्रचार करने वाली भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंधित घटक दलों ने उनकी बदनामी की मुहीम सतत् चलाए रखी, परंतु उस पर ध्यान न देकर राहुल गांधी एकाधि स्टुडेंट की तरह पूरे देश को समझने का प्रयास करते रहे.

राहुल गांधी ने सन् 2004 में राजनीति में प्रवेश किया था, उसे अब आठ साल हो गए हैं. अमेठी के सांसद के रुप में काम करते हुए ही उन्होंने युवक कांग्रेस और एनएसयूआई के अध्यक्ष पद, कांग्रेस के महासचिव पद की जिम्मेदारी भी निभाई. युवक कांग्रेस और एनएसयूआई अध्यक्ष बनने के बाद इन दोनों संगठनों की सदस्य संख्या को बढ़ाया. दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से लेकर देश भर के तमाम स्थानों के युवकों से सीधा संवाद करने की कोशिश की. देश के युवा क्या सोच रह हैं, राजनीति और राजनेताओं के बारे में उनकी क्या भावनाएं हैं, यह जान लेने की उन्होंने कोशिश की. इस संवाद से ही उन्हें पता चला कि युवाओं के मन में राजनेताओं के प्रति क्यों वैर-भाव है. एनएसयूआई, युवक कांग्रेस में नेताओं के परिवार के युवकों की भरमार होने का भी पता चला, इसलिए उन्होंने चुनाव करवाकर संगठन का चेहरा-मोहरा बदलने की कोशिश की. 

ये सब करते हुए पिछ ले तीन सालों से सतत् राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने या प्रधानमंत्री पद स्वीकार करने के संदर्भ में चर्चा होती रही है. 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले प्रणब मुखर्जी को मौका मिलेगा और उसके बाद राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनेंगे, यह कयास राजनीतिक पंडित लगा रहे थे. प्रणबदा को अब राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी मिल जाने से प्रधानमंत्री पद की दौड़ में एक नाम स्वाभाविक रुप से कम हो गया है और मनमोहनसिंह के बाद राहुल गांधी के लिए संभावनाएं बढ़ गई हैं. दिग्विजयसिंह के मुताबिक, अगले सितंबर में राहुल गांधी महत्व की जिम्मेदारी स्व्ीकार करेंगे. यह जिम्मेदारी क्या हो सकती है. मुङो लगता है कि जिम्मेदारी प्रधानमंत्री पद के पहले का पड़ाव हो सकता है. फिर वह कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष  का पद भी हो सकता है या फिर केंद्रीय मंत्री पद भी. कांग्रेस की संगठनात्मक रचना और कार्य पद्धति पर कितनी ही टीका की जाती हो तो पार्टी में सबको एकस्वर से मान्य नेतृत्व आज भी सोनिया गांधी के रुप में कांग्रेस में ही है और भविष्य में भी राहुल गांधी के रुप में कांग्रेस में ही रहेगा.

सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर मर्यादा की सारी सीमाए लांघकर उनके खिलाफ टीकाएं की गईं. वैसा ही अनुभव राहुल गांधी के मामले में आ रहा है किंतु उस ओर ध्यान न देते हुए राहुल गांधी ने देश को समझने पर अपना ध्यान केंद्रित किया. महात्मा गांधी ने आजादी की लड़ाई के पूर्व रेल्वे के तीसरे दज्रे के डिब्बे में सफर कर देश को समझने की कोशिश की थी. उसके नब्बे साल बाद राहुल ने उनका अनुसरण किया. रोजगार की तलाश में महानगरों की ओर पलायन से महानगरों में एक बड़ी समस्या उत्पन्न हो रही है. 

इस समस्या को समझ लेने के लिए राहुल गांधी ने 20 अक्टूबर 2010 को गोरखपुर से मुंबई तक का सफर स्लीपर क्लास में किया. उत्तर भारत के राज्यों से लोग मुंबई की ओर बड़ी संख्या में पलायन करते हैं, उनके पलायन करने के पीछे कौन से कारण हैं, यह जानने-समझने के लिए उन्होंने 36 घंटे का सफर किया, यह सफर करते हुए उन्होंने मीडिया को भनक भी नहीं लगने लगी. दलितों के जीवन को समझने के लिए वे झोपड़ी में रहे. सहकारिता को समझने के लिए पश् िचम महाराष्ट्र का दौरा किया और वसंतदादा पाटील शुगर इन्स्टिय़ूट के विशेषज्ञों से लेकर बांध पर जाकर छोटे किसानों तक से चर्चा की.

उत्तरप्रदेश में कांग्रेस का जनाधार लड़खड़ाने के बाद केंद्र में कांग्रेस को सत्ता के लिए दूसरे दलों का सहयोग लेना पड़ रहा है, यह मालूम होने के बाद भी राहुल ने उत्तरप्रदेश में कांग्रेस को जिंदा करने के लिए भरसक कोशिश की, वहां अपेक्ष्ति नतीजे नहीं आने से उनकी नेतृत्वक्षमता पर भी सवाल उठे थे. अब राहुल एक बार सुर्खियों में हैं. सितंबर भी करीब है, इसलिए इंतजार करना होगा, उसके बाद ही पता चल पाएगा कि गांधी खानदान का यह राजकुमार कौन-सी भूमिका में आएगा?

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