बात 1979 की है, ‘नईदुनिया’ से जुड़ने के साल-छह महीने पहले की। शाहिदभाई, यानि शाहिद मिर्जा से मिलने मैं बिलानागा ‘नईदुनिया’ जाया करता था। उनमें कला, साहित्य, पेंटिंग्स की गजब की समझ थी। एक दिन वे बोले, कल हुसैनसाब इंदौर आ रहे हैं, अनीस नियाजी के चित्रों की प्रदर्शनी का शुभारंभ करने। प्रदर्शनी इंदौर के रवींद्र नाटय़गृह में होनी थी। हुसैन साब, तब तक देश के बड़े चित्रकार बन चुके थे। दूसरे दिन जब मैं और शाहिदभाई वहां पहुंचे तो थोड़ी देर बाद देखा कि हुसैन साब पैदल ही चले आ रहे थे। उनकी यह सादगी देख मैं भौंचक था..इतनी बड़ी हस्ती और पैदल..फिर शाहिद भाई ने मेरा उनसे परिचय कराया..कार्यक्रम के दौरान बातचीत हुई और उनके व्यक्तित्व का परिचय हुआ।
वे एक चित्रकार ही नहीं, दार्शनिक और चिंतक भी थे। दुनिया भर में घूमने वाले हुसैन के साथ कुछ रहे न रहे, उनका बगलझोला हमेशा रहता था..जिसमें उनकी तूलिका यानि ब्रश जरूर होता था..उनकी सादगी के अनेक किस्से हैं..उनके चाहने वालों की संख्या कम नहीं है तो विरोधी भी हैं..इंदौर और भोपाल में उनसे जुड़े अनेक लोग हैं जो उनके दीवाने हैं..उनके खास मित्रों में इंदौर के रामजी वर्मा (चित्रकार अखिलेश वर्मा-देवेश वर्मा के पिता)और अब्दुल वहीद (चित्रकार अब्दुल कादिर के पिता)थे..वे एक बार जब रामजी वर्मा के छावनी स्थित घर पर गए तो उनकी बिटिया ने पेंटिंग्स सीखने की इच्छा जाहिर की, फिर क्या था हुसैन फर्श पर ही बैठ गए और ब्रश निकालकर पेंटिंग बनाना शुरू कर दिया और थोड़ी देर में पेंटिंग बना दी..बताते हैं कि वर्मा परिवार ने वह पेंटिंग आज भी सम्हाल कर रखी है।
----------------
भारत के पिकासो माने जाने वाले, जितने मशहूर उतने ही विवादास्पद चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन को दुनिया छोड़े आज पूरा एक साल हो गया। हुसैन को देवी सरस्वती और भारत माता के चित्रों के कारण विवादों से रूबरू होना पड़ा था। इन विवादों के बाद हुसैन को जब यह अहसास हो गया कि भारत में वे सुरक्षित नहीं है और यहां की सरकार भी उनकी रक्षा नहीं कर पाएगी तो उन्होंने कतर में बसने का इरादा कर लिया था और वहीं से महाप्रयाण कर गए। चित्रकला हो या नाटक, सिनेमा हो या साहित्य या कोई-सी भी कला, कलाकार अपनी भावनाओं का इजहार कर सकता है। साहित्य, कला, नाटक आदि के मामले में आम आदमी की समझ कम नहीं होने पर भी यदि कोई उसके विरोध को भड़काने की कोशिश करता है उनकी भावनाएं फौरन भड़क जाती है। फिर ये लोग फौरन धरना, प्रदर्शन, तोड़फोड़ पर उतारू हो जाते हैं। ऐसे लोग हर जाति-धर्म होते हैं। भावनाओं को भड़काने का, कोई मौका वे हाथ से जाने नहीं देते। इसके लिए भड़काऊ लेखन, भड़काऊ भाषण ही नहीं दिए जाते, बल्कि धरना, प्रदर्शन, जुलूस आदि भी निकाले जाते हैं। खैर, एमएफ हुसैन इस असहिष्णु प्रवृत्ति के कोई पहले शिकार नहीं थे। ऐसी अनुदार प्रवृत्ति को शिकस्त देने में हमारी सरकार भी कम पड़ती है। (जारी)
----------------
भारत के पिकासो माने जाने वाले, जितने मशहूर उतने ही विवादास्पद चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन को दुनिया छोड़े आज पूरा एक साल हो गया। हुसैन को देवी सरस्वती और भारत माता के चित्रों के कारण विवादों से रूबरू होना पड़ा था। इन विवादों के बाद हुसैन को जब यह अहसास हो गया कि भारत में वे सुरक्षित नहीं है और यहां की सरकार भी उनकी रक्षा नहीं कर पाएगी तो उन्होंने कतर में बसने का इरादा कर लिया था और वहीं से महाप्रयाण कर गए। चित्रकला हो या नाटक, सिनेमा हो या साहित्य या कोई-सी भी कला, कलाकार अपनी भावनाओं का इजहार कर सकता है। साहित्य, कला, नाटक आदि के मामले में आम आदमी की समझ कम नहीं होने पर भी यदि कोई उसके विरोध को भड़काने की कोशिश करता है उनकी भावनाएं फौरन भड़क जाती है। फिर ये लोग फौरन धरना, प्रदर्शन, तोड़फोड़ पर उतारू हो जाते हैं। ऐसे लोग हर जाति-धर्म होते हैं। भावनाओं को भड़काने का, कोई मौका वे हाथ से जाने नहीं देते। इसके लिए भड़काऊ लेखन, भड़काऊ भाषण ही नहीं दिए जाते, बल्कि धरना, प्रदर्शन, जुलूस आदि भी निकाले जाते हैं। खैर, एमएफ हुसैन इस असहिष्णु प्रवृत्ति के कोई पहले शिकार नहीं थे। ऐसी अनुदार प्रवृत्ति को शिकस्त देने में हमारी सरकार भी कम पड़ती है। (जारी)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें