गुरुवार, 7 जून 2012

‘काले सोने’ की दुनिया के स्याह चेहरे

शाहरुख खान की फिल्म ‘डॉन-2’ अमिताभ बच्चन की ‘डॉन’ का नया स्वरुप है, उसी प्रकार राजनीतिक फलक पर भी राजनेताओं का ‘डॉन-2’ का नया अवतार जन्म ले रहा है। फर्क है तो केवल इतना कि पहले माफिया, केवल ‘माफिया’ ही होते थे। अब माफिया नेताओं के रुप में राजनीति में दाखिल हो रहे हैं। कितने ही पॉलीटिशियन माफिया डॉन का स्थान ले रहे हैं। इस बात का उदाहरण झारखंड और गुजरात का पोरबंदर है। पूरे गुजरात में नरेंद्र मोदी का राज होगा पर पोरबंदर में आज भी खनिज माफियाओं का राज है।
गुजरात में राजस्थान के सोहराबुद्दीन को एनकाउंटर में मौत के घाट उतार दिया परंतु आरोप है कि सोहराबुद्दीन राजस्थान की मार्बल की खदानों के मालिकों से चौथ वसूली करता था और राजस्थान के एक नेता के इशारे पर ही मौत के घाट उतारा गया था। सोहराबुद्दीन जैसे ‘डॉन’ की हत्या राजस्थान का एक नेता करवा सकता है तो असली ‘डॉन’ सोहराबुद़दीन है या वो नेता?

 सूरजदेव सिंह

झारखंड एक ऐसा राज्य है, जो खनिज संपदा से संपन्न है, किंतु वहां की जनता गरीब है। खनिज माफियाओं से लेकर राजनेताओं और बहुराष्ट्रीय कंपनियों तक की उस पर गिद्ध-दृष्टि है। झारखंड में खनिज व्यवसाय ठेठ 1950 से शुरू है। झारखंड में प्रचुर मात्र में कोयला है। कोयले की ज्यादातर खदानें निजी संस्थाओं के हाथों में थी। अधिकांश माइनर्स उत्तर बिहार  और पश्चिमी उत्तरप्रदेश से आते थे, जबकि ज्यादातर खदान मालिक गुजरात और राजस्थान से आते थे। कोयला खदानों के मालिक मजदूरों पर नियंत्रण करने के लिए गुंडों का इस्तेमाल करते थे। 1957-58 के दौरान बी.पी. सिन्हा नामक एक च्यक्ति खदान श्रमिकों के नेता के रुप में उभरा। थोड़े समय बाद श्रमिकों ने सिन्हा की उपेक्षा शुरू कर दी। इस पर सिन्हा ने उत्तरप्रदेश के बलिया से अपने विश्वस्त सूरजदेव सिंह को झारखंड बुलवा लिया। बस, यहीं से शुरू हुआ कोल माइनिंग का अपराधीकरण। कुछ सालों तक तो सूरजदेव सिंह बी.पी. सिन्हा के के लिए काम करता रहा, फिर उसे लगा कि सिन्हा के लिए काम करने के बजाय खुद के लिए काम करना चाहिए। सूरजदेव ने शुरुआत में 10 डम्पर्स खरीदे और कोयला खदानों से अवैध उत्खनन शुरू कर दिया। कहा जाता है कि अवैध खनन से सूरजदेव ने 1975 तक करीब 50 करोड़ रुपए कमा लिए थे।

राजनीति में प्रवेश

कई वर्षो बाद सूरजदेव को लगा कि कोयला खदानों के अवैध उत्खनन का काम चालू रखना है तो उसे राजनीति में आना पड़ेगा। सूरजदेव सिंह देश के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के संसदीय क्षेत्र बलिया का रहने वाला था, इसलिए उसने चंद्रशेखर के करीबी नेताओं से संबंध बढ़ना शुरू कर दिया। 1977 में सूरजदेवसिंह को जनता पार्टी से टिकट मिल गई और वह एरिया विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर विधायक बन गया। इसके बाद उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। राजनीति में आने के बाद सरकार का कोई कानून उसके आड़े नहीं आया। वह कानून से ‘अनटचेबल’ हो गया। इसके बाद उसने इतना धन कमाया कि एक दिन वो बोल गया, ‘मेरे पास इतना पैसा है कि मैं पूरे राज्य को एक महीने तक खाना खिला सकता हूं।’

कुंती सिंह कौन है?

कोयला ‘डॉन’ से विधायक बन चुके सूरजदेव, इसके बाद अनेक वर्षो तक झारखंड की काली दुनिया का एकछत्र ‘डॉन’ बना रहा। जून 1991 में उसकी मृत्यु हुई, उसके बाद सूरजदेव के परिवार में संपत्ति को लेकर जबरदस्त विवाद शुरू हुआ और लोगों ने इस झगड़े का लाभ उठाना शुरू किया। सूरजदेव की प}ी कुंती सिंह, बाद में भाजपा से विधायक बन गईं। कुंती सिंह का सूरजदेव के तीन भाइयों-बच्च सिंह, राजन सिंह और रामधनी सिंह के बीच कलह और विवाद का फायदा दूसरे लोगों ने उठाया। सीबीआई और इन्कम टेक्स डिपार्टमेंट ने कोल माइंस के स्वामियों और उनकी कंपनियों पर छापे मारे, जिसमें भारत कोकिंग कोल लिमिटेड धनबाद के एक कांट्रेक्टर बीएल सिंह के घर से 100 करोड़ रुपए की बेनामी रकम बरामद की गई। बीएल सिंह, सूरजदेव सिंह की विधवा प}ी और भाजपा विधायक के सहयोगी माने जाते हैं। सीबीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी का मानना है कि झारखंड में कोयले अवैध उत्खनन करने वालों को नेताओं का सीधा संरक्षण होता है। फिर कुंती सिंह तो खुद खनिज ‘डॉन’ की बीवी है।

जानिए, धूलु महतो को

झारखंड की हायकोर्ट में हाल ही में एक जनहित याचिका दाखिल की गई है। यह याचिका झारखंड विकास मोर्चा प्रजातांत्रिक के विधायक धूलु महतो के खिलाफ है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि धूलु महतो ने कोयला खदानों में अवैध खनन कर 200 करोड़ की संपत्ति इकट्ठा की है। याचिकाकर्ता सोमनाथ चटर्जी ने साफ कहा है-‘मैंने धूलु महतो का अवैध खनन के जरिए उदय होते देखा है। हाल ही में एक ईसाई नन सिस्टर सिल्वा की जो हत्या हुई है, उसमें भी अवैध खनन करने वालों का हाथ है। सिस्टर सिल्वा आदिवासी इलाकों में खनिज के गैर कानूनी खनन का विरोध कर रही थी। सरकार ने यदि ठोस कदम नहीं उठाए तो ज्यादा से ज्यादा लेता ‘माफिया’का स्थान ले लेंगे। पिछले चुनाव में धूलु महतो से हार जाने वाले जलेश्वर महतो ने झारखंड के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि धनबाद के कोल-माफियाओं के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाए गए तो एक दिन ये लोग झारखंड बेच देंगे।’
एक रिपोर्ट के मुताबकि, झारखंड की कोयला खदानों के इलाकों में एक लाख से ज्यादा ट्रक कोयले की हेराफेरी होती है। ये ट्रक मालिक झारखंड में ट्रक चलसने के लिए प्रति ट्रिप माफिया को एक हजार रुपए देते हैं। यह रकम दा करोड़ रुपए होती है। माफिया, ये रकम पुलिस, पॉलीटिशियंस और प्रशासन के अधिकारियों में बांटने के बाद बाकी की रकम अपने पास रख लेता है। झारखंड की धरती में प्रचुर मात्र में कोयला, बाक्साईट और आयर्न है। खनिज के अवैध खनन और वाहनों की चेंकिंग करने की हिम्मत किसी में नहीं, क्योंकि उन पर मधु कोड़ा जैसे राजनीतिज्ञ की छत्रछाया होती है। झारखंड के इस पूर्व मुख्यमंत्री का खनिज घोटाला 4 हजार करोड़ रुपए का होने का माना जाता है। मौजूदा मुख्यमंत्री अजरुन मुंडा की केबिनेट के तमाम मंत्रियों पर अवैध खनन से जुड़े होने का आरोप है। ये नेता अवैध खनन करने वाले ‘माफिया’ के ‘गॉड फादर’ का रोल अदा करते हैं।

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